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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 39
    ऋषिः - वैखानस ऋषिः देवता - राजादयो गृहस्था देवताः छन्दः - आर्षी गायत्री,आर्ची उष्णिक् स्वरः - षड्जः, ऋषभः
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    उ॒त्तिष्ठ॒न्नोज॑सा स॒ह पी॒त्वी शिप्रे॑ऽअवेपयः। सोम॑मिन्द्र च॒मू सु॒तम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतो॒ऽसीन्द्रा॑य॒ त्वौज॑सऽए॒ष ते॒ योनि॒रिन्द्रा॑य॒ त्वौज॑से। इन्द्रौ॑जि॒ष्ठौजि॑ष्ठ॒स्त्वं दे॒वेष्वस्योजि॑ष्ठो॒ऽहं म॑नु॒ष्येषु भृयासम्॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त्तिष्ठ॒न्नित्यु॒त्ऽतिष्ठ॑न्। ओज॑सा। स॒ह। पी॒त्वी। शिप्रे॒ऽइति॒ शिप्रे॑। अ॒वे॒प॒यः॒। सोम॑म्। इ॒न्द्र॒। च॒मूऽइति॑ च॒मू। सु॒तम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। इन्द्रा॑य। त्वा॒। ओज॑से। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। इन्द्रा॑य। त्वा॒। ओज॑से। इन्द्र॑। ओ॒जि॒ष्ठ॒। ओजि॑ष्ठः। त्वम्। दे॒वेषु॑। असि॑। ओजि॑ष्ठः। अ॒हम्। म॒नु॒ष्ये॒षु। भू॒या॒स॒म् ॥३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तिष्ठन्नोजसा सह पीत्वी शिप्रे ऽअवेपयः । सोममिन्द्र चमूसुतम् । उपयामगृहीतो सीन्द्राय त्वौजसे ऽएष ते योनिरिन्द्राय त्वौजसे । इन्द्रौजिष्ठौजिष्ठस्त्वन्देवेष्वस्योजिष्ठो हम्मनुष्येषु भूयासम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्तिष्ठन्नित्युत्ऽतिष्ठन्। ओजसा। सह। पीत्वी। शिप्रेऽइति शिप्रे। अवेपयः। सोमम्। इन्द्र। चमूऽइति चमू। सुतम्। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। इन्द्राय। त्वा। ओजसे। एषः। ते। योनिः। इन्द्राय। त्वा। ओजसे। इन्द्र। ओजिष्ठ। ओजिष्ठः। त्वम्। देवेषु। असि। ओजिष्ठः। अहम्। मनुष्येषु। भूयासम्॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 39
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    पदार्थ -
    हे (इन्द्र) ऐश्वर्य रखने वाले वा ऐश्वर्य में रमने वाले सभापते! आप (चमू) सेना के साथ (सुतम्) उत्पादन किये हुए (सोमम्) सोम को (पीत्वी) पीके (ओजसा) शरीर, आत्मा, राजसभा और सेना के बल के (सह) साथ (उत्तिष्ठन्) अच्छे गुण, कर्म और स्वभावों में उन्नति को प्राप्त होते हुए (शिप्रे) युद्धादि कर्मों से डाढ़ी और नासिका आदि अङ्गों को (अवेपयः) कम्पाओ अर्थात् यथायोग्य कामों में अङ्गों की चेष्टा करो। हम लोगों ने आप (उपयामगृहीतः) राज्य के नियम उपनियमों से ग्रहण किये (असि) हैं, (ते) आपका (एषः) यह राज्य कर्म (योनिः) ऐश्वर्य का कारण है, इससे (त्वा) आप को सावधानता से (इन्द्राय) परमैश्वर्य देने वाले जगदीश्वर की प्राप्ति के लिये सेवन करते हैं, (ओजसे) अत्यन्त पराक्रम और (इन्द्राय) शत्रुओं के विदारण के लिये (त्वा) आप को प्रेरणा करते हैं। हे (ओजिष्ठ) अत्यन्त तेजधारी जैसे (त्वम्) आप (देवेषु) शत्रुओं को जीतने की इच्छा करने वालों में (ओजिष्ठः) अत्यन्त पराक्रम वाले (असि) हैं, वैसे ही मैं भी (मनुष्येषु) साधारण मनुष्यों में (भूयासम्) होऊं॥३९॥

    भावार्थ - राजपुरुषों को यह योग्य है कि भोजन, वस्त्र और खाने-पीने के पदार्थों से शरीर के बल को उन्नति देवें, किन्तु व्यभिचारादि दोषों में कभी न प्रवृत्त होवें और यथोक्त व्यवहारों में परमेश्वर की उपासना भी करें॥३९॥

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