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  • यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 30
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - वस्वादयो देवताः छन्दः - कृतिः स्वरः - निषादः
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    अस॑वे॒ स्वाहा॒ वस॑वे॒ स्वाहा॑ वि॒भुवे॒ स्वाहा॒ विव॑स्वते॒ स्वाहा॑ गण॒श्रिये॒ स्वाहा॑ ग॒णप॑तये॒ स्वाहा॑भि॒भुवे॒ स्वाहाधि॑पतये॒ स्वाहा॑ शू॒षाय॒ स्वाहा॑ सꣳस॒र्पाय॒ स्वाहा॑ च॒न्द्राय॒ स्वाहा॒ ज्योति॑षे॒ स्वाहा॑ मलिम्लु॒चाय॒ स्वाहा॒ दिवा॑ प॒तये॒ स्वाहा॑॥३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अस॑वे। स्वाहा॑। वस॑वे। स्वाहा॑। वि॒भुव॒ इति॑ वि॒ऽभुवे॑। स्वाहा॑। विव॑स्वते। स्वाहा॑। ग॒ण॒श्रिय॒ इति॑ गण॒ऽश्रिये॑। स्वाहा॑। ग॒णप॑तय॒ इति॑ ग॒णऽप॑तये। स्वाहा॑। अ॒भि॒भुव॒ इत्य॑भि॒ऽभुवे॑। स्वाहा॑। अधि॑पतय॒ इ॒त्यधि॑ऽपतये। स्वाहा॑। शू॒षाय॑। स्वाहा॑। स॒ꣳस॒र्पायेति॑ सम्ऽस॒र्पाय॑। स्वाहा॑। च॒न्द्राय॑। स्वाहा॑। ज्योति॑षे। स्वाहा॑। म॒लि॒म्लु॒चाय॑। स्वाहा॑। दिवा॑। प॒तये॑। स्वाहा॑ ॥३० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    असवे स्वाहा वसवे स्वाहा विभुवे स्वाहा विवस्वते स्वाहा गणश्रिये स्वाहा गणपतये स्वाहाभिभुवे स्वाहाधिपतये स्वाहा शूषाय स्वाहा सँसर्पाय स्वाहा चन्द्राय स्वाहा ज्योतिषे स्वाहा मलिम्लुचाय स्वाहा दिवा पतयते स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    असवे। स्वाहा। वसवे। स्वाहा। विभुव इति विऽभुवे। स्वाहा। विवस्वते। स्वाहा। गणश्रिय इति गणऽश्रिये। स्वाहा। गणपतय इति गणऽपतये। स्वाहा। अभिभुव इत्यभिऽभुवे। स्वाहा। अधिपतय इत्यधिऽपतये। स्वाहा। शूषाय। स्वाहा। सꣳसर्पायेति सम्ऽसर्पाय। स्वाहा। चन्द्राय। स्वाहा। ज्योतिषे। स्वाहा। मलिम्लुचाय। स्वाहा। दिवा। पतये। स्वाहा॥३०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 22; मन्त्र » 30
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    अन्वयः - हे मनुष्याः! यूयमसवे स्वाहा वसवे स्वाहा विभुवे स्वाहा विवस्वते स्वाहा गणश्रिये स्वाहा गणपतये स्वाहाऽभिभुवे स्वायाऽधिपतये स्वाहा शूषाय स्वाहा संसर्पाय स्वाहा चन्द्राय स्वाहा ज्योतिषे स्वाहा मलिम्लुचाय स्वाहा दिवापतये स्वाहा च प्रयुङ्ध्वम्॥३०॥

    पदार्थः -
    (असवे) प्राणाय (स्वाहा) (वसवे) योऽस्मिन् शरीरे वसति तस्मै जीवाय (स्वाहा) (विभुवे) व्यापकाय वायवे (स्वाहा ) (विवस्वते) सूर्याय (स्वाहा) (गणश्रिये) या गणानां समूहानां श्रीः शोभा तस्यै विद्युते (स्वाहा) (गणपतये) समूहानां पालकाय वायवे (स्वाहा) (अभिभुवे) अभिमुखं भावुकाय (स्वाहा) (अधिपतये) सर्वस्वामिने राज्ञे (स्वाहा) (शूषाय) बलाय सैन्याय (स्वाहा) (संसर्पाय) यः सम्यक् सर्पति गच्छति तस्मै (स्वाहा) (चन्द्राय) सुवर्णाय। चन्द्रमिति हिरण्यनामसु पठितम्॥ निघं॰१।२॥ (स्वाहा) (ज्योतिषे) प्रदीपनाय (स्वाहा) (मलिम्लुचाय) स्तेनाय। मलिम्लुच इति स्तेननामसु पठितम्॥ निघं॰३।२४॥ (स्वाहा) (दिवा, पतये) दिनस्य पालकाय सूर्याय (स्वाहा)॥३०॥

    भावार्थः - मनुष्यैः प्राणादिशुद्धयेऽग्नौ पुष्टिकरादिद्रव्यं होतव्यम्॥३०॥

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