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  • यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 33
    ऋषिः - शुनःशेप ऋषिः देवता - अश्विनौ देवते छन्दः - निचृत् अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
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    यु॒वꣳ सु॒राम॑मश्विना॒ नमु॑चावासु॒रे सचा॑। वि॒पि॒पा॒ना शु॑भस्पती॒ऽइन्द्रं॒ कर्म॑स्वावतम्॥३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒वम्। सु॒राम॑म्। अ॒श्वि॒ना॒। नमु॑चौ। आ॒सु॒रे। सचा॑। वि॒पि॒पा॒नेति॑ विऽपि॒पा॒ना। शु॒भः॒। प॒ती॒ऽइति॑ पती। इन्द्र॑म्। कर्म॒स्विति॒ कर्म॑ऽसु। आ॒व॒त॒म् ॥३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयँ सुराममश्विना नमुचावासुरे सचा । विपिपाना शुभस्पती इन्द्रङ्कर्मस्वावतम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युवम्। सुरामम्। अश्विना। नमुचौ। आसुरे। सचा। विपिपानेति विऽपिपाना। शुभः। पतीऽइति पती। इन्द्रम्। कर्मस्विति कर्मऽसु। आवतम्॥३३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 10; मन्त्र » 33
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    Meaning -
    O Speaker of the Assembly and Commander of the Army, ye, the united protectors of the State, and doers of altruistic deeds, protect from evil deeds and carnal pleasures, the rich cultivator, nicely busy with agricultural performances.

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