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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 19
    ऋषिः - पुरुमीढाजमीढावृषी देवता - इन्द्रवायू देवते छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    गाव॒ऽउपा॑वताव॒तं म॒ही य॒ज्ञस्य॑ र॒प्सुदा॑। उ॒भा कर्णा॑ हिर॒ण्यया॑॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गावः॑। उप॑। अ॒व॒त॒। अ॒व॒तम्। म॒हीऽइति॑ म॒ही। य॒ज्ञस्य॑। र॒प्सुदा॑ ॥ उ॒भा। कर्णा॑। हि॒र॒ण्यया॑ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गावऽउपावतावतम्मही यज्ञस्य रप्सुदा । उभा कर्णा हिरण्यया ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    गावः। उप। अवत। अवतम्। महीऽइति मही। यज्ञस्य। रप्सुदा॥ उभा। कर्णा। हिरण्यया॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 19
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    Meaning -
    Just as the cows and suns rays protect the beautifying Heaven and Earth, so should the learned protect both the ears coupled with golden ornaments, and parts of altar in a yajna.

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