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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 28
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - भुरिगार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    तऽआय॑जन्त॒ द्रवि॑ण॒ꣳ सम॑स्मा॒ऽऋष॑यः॒ पूर्वे॑ जरि॒तारो॒ न भू॒ना। अ॒सूर्त्ते॒ सूर्त्ते॒ रज॑सि निष॒त्ते ये भू॒तानि॑ स॒मकृ॒॑ण्वन्नि॒मानि॑॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते। आ। अ॒य॒ज॒न्त॒। द्रवि॑णम्। सम्। अ॒स्मै॒। ऋष॑यः। पूर्वे॑। ज॒रि॒तारः॑। न। भू॒ना। अ॒सूर्त्ते॑। सूर्त्ते॑। रज॑सि। नि॒ष॒त्ते। नि॒स॒त्त इति॑ निऽस॒त्ते। ये। भू॒तानि॑। स॒मकृ॑ण्व॒न्निति॑ स॒म्ऽअकृ॑ण्वन्। इमानि॑ ॥२८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तऽआयजन्त द्रविणँ समस्माऽऋषयः पूर्वे जरितारो न भूना । असूर्ते सूर्ते रजसि निषत्ते ये भूतानि समकृण्वन्निमानि् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ते। आ। अयजन्त। द्रविणम्। सम्। अस्मै। ऋषयः। पूर्वे। जरितारः। न। भूना। असूर्त्ते। सूर्त्ते। रजसि। निषत्ते। निसत्त इति निऽसत्ते। ये। भूतानि। समकृण्वन्निति सम्ऽअकृण्वन्। इमानि॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 28
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    Meaning -
    They are the Rishis, visionaries of Divinity, who, like celebrants in worship, have offered songs and libations of rich materials to Lord Vishvakarma and who, residing in known as well as in unknown worlds, have directed and attracted the mind and soul of living beings to the lord.

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