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  • यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 11
    ऋषिः - आदित्या देवा ऋषयः देवता - आपो देवताः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    अपा॒घमप॒ किल्वि॑ष॒मप॑ कृ॒त्यामपो॒ रपः॑।अपा॑मार्ग॒ त्वम॒स्मदप॑ दुः॒ष्वप्न्य॑ꣳ सुव॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑। अ॒घम्। अप॑। किल्वि॑षम्। अप॑। कृ॒त्याम्। अपो॒ऽइत्यपोः॑। रपः॑ ॥ अपा॑मार्ग। अप॑मा॒र्गेत्यप॑ऽमार्ग। त्वम्। अ॒स्मत्। अप॑। दुः॒ष्वप्न्य॑म्। दुः॒ष्वप्न्य॒मिति॑ दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। सु॒व॒ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपाघमप किल्विषमप कृत्यामपो रपः । अपामार्ग त्वमस्मदप दुःष्वप्न्यँ सुव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अप। अघम्। अप। किल्विषम्। अप। कृत्याम्। अपोऽइत्यपोः। रपः॥ अपामार्ग। अपमार्गेत्यपऽमार्ग। त्वम्। अस्मत्। अप। दुःष्वप्न्यम्। दुःष्वप्न्यमिति दुःऽस्वप्न्यम्। सुव॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 35; मन्त्र » 11
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    Meaning -
    Sage physician of mind and soul, great as apamarga, universal cure, wash out sin, cleanse impurity, eliminate evil action, rectify sensual frailties, and root out dirty dreams.

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