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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 10
ऋषिः - वामदेवः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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अ꣢ग्ने꣣ वि꣡व꣢स्व꣣दा꣡ भ꣢रा꣣स्म꣡भ्य꣢मू꣣त꣡ये꣢ म꣣हे꣢ । दे꣣वो꣡ ह्यसि꣢꣯ नो दृ꣣शे꣢ ॥१०

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । वि꣡व꣢꣯स्वत् । वि । व꣣स्वत् । आ꣢ । भ꣣र । अस्म꣡भ्य꣢म् । ऊ꣣त꣡ये꣢ । म꣣हे꣢ । दे꣣वः꣢ । हि । अ꣡सि꣢꣯ । नः꣢ । दृशे꣢ ॥१०॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्ने विवस्वदा भरास्मभ्यमूतये महे । देवो ह्यसि नो दृशे ॥१०


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने । विवस्वत् । वि । वस्वत् । आ । भर । अस्मभ्यम् । ऊतये । महे । देवः । हि । असि । नः । दृशे ॥१०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 10
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
हे (अग्ने) परम पिता परमात्मन् ! आप (महे) महान् (ऊतये) रक्षा के लिए (अस्मभ्यम्) हमें (विवस्वत्) अविद्यान्धकार को निवारण करनेवाला अध्यात्म-प्रकाश (आ भर) प्रदान कीजिए। (हि) क्योंकि, आप (नः) हमारे (दृशे) दर्शन के लिए, हमें विवेकदृष्टि प्रदान करने के लिए (हि) निश्चय ही (देवः) प्रकाश देनेवाले (असि) हैं ॥१०॥ श्लेषालङ्कार से मन्त्र की सूर्यपरक अर्थयोजना भी करनी चाहिए ॥१०॥

भावार्थ - सूर्यरूप अग्नि जैसे जीवों की रक्षा के लिए अन्धकार-निवारक ज्योति प्रदान करता है, वैसे ही परमेश्वर अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, मोह आदि रूप अन्धकार के निवारण के लिए हमें आध्यात्मिक तेज प्रदान करे ॥१०॥ प्रथम प्रपाठक, प्रथम अर्ध में प्रथम दशति समाप्त। प्रथम अध्याय में प्रथम खण्ड समाप्त।

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