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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1023
ऋषिः - वसुश्रुत आत्रेयः
देवता - अग्निः
छन्दः - पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
4
आ꣡ ते꣢ अग्न ऋ꣣चा꣢ ह꣣विः꣢ शु꣣क्र꣡स्य꣢ ज्योतिषस्पते । सु꣡श्च꣢न्द्र꣣ द꣢स्म꣣ वि꣡श्प꣢ते꣣ ह꣡व्य꣢वा꣣ट्तु꣡भ्य꣢ꣳ हूयत꣣ इ꣡ष꣢ꣳ स्तो꣣तृ꣢भ्य꣣ आ꣡ भ꣢र ॥१०२३॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । ते꣣ । अग्ने । ऋचा꣢ । ह꣣विः꣢ । शु꣣क्र꣡स्य꣢ । ज्यो꣣तिषः । पते । सु꣡श्च꣢꣯न्द्र । सु । च꣣न्द्र । द꣡स्म꣢꣯ । वि꣡श्प꣢꣯ते । ह꣡व्य꣢꣯वाट् । ह꣡व्य꣢꣯ । वा꣣ट् । तु꣡भ्य꣢꣯म् । हू꣣यते । इ꣡ष꣢꣯म् । स्तो꣣तृ꣡भ्यः꣢ । आ । भ꣣र ॥१०२३॥
स्वर रहित मन्त्र
आ ते अग्न ऋचा हविः शुक्रस्य ज्योतिषस्पते । सुश्चन्द्र दस्म विश्पते हव्यवाट्तुभ्यꣳ हूयत इषꣳ स्तोतृभ्य आ भर ॥१०२३॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । ते । अग्ने । ऋचा । हविः । शुक्रस्य । ज्योतिषः । पते । सुश्चन्द्र । सु । चन्द्र । दस्म । विश्पते । हव्यवाट् । हव्य । वाट् । तुभ्यम् । हूयते । इषम् । स्तोतृभ्यः । आ । भर ॥१०२३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1023
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में आचार्य के अधीन निवास करता हुआ शिष्य यज्ञाग्नि में हवि की आहुति देता हुआ कहता है।
पदार्थ -
हे (शुक्रस्य) दीप्त (ज्योतिषः) तेज के (पते) स्वामिन् ! यह (ते) तेरे लिए (ऋचा) वेदमन्त्र के उच्चारण के साथ (हविः) हवि है। हे (सुश्चन्द्र) उत्तम आह्लाद देनेवाले, (दस्म) रोगों को नष्ट करनेवाले, (विश्पते) प्रजापालक, (हव्यवाट्) होमी हुई हवि को जलाकर सूक्ष्म करके वायु के माध्यम से स्थानान्तर में पहुँचानेवाले (अग्ने) यज्ञाग्नि ! (तुभ्यम्) तेरे लिए, यह हवि (हूयते) होमी जा रही है। तू (स्तोतृभ्यः) मन्त्रपाठ द्वारा तेरे गुणवर्णन में तत्पर हम लोगों के लिए (इषम्) अभीष्ट आरोग्य आदि (आ भर) प्रदान कर ॥२॥
भावार्थ - गुरुकुल में विद्या पढ़ने के लिए निवास करते हुए सब छात्र नियम से प्रातः-सायम् अग्निहोत्र करते हुए वायुशुद्धि द्वारा आरोग्य आदि को और तेजस्विता को प्राप्त कर सुखी होवें ॥२॥
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