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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1034
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣡सृ꣢क्षत꣣ प्र꣢ वा꣣जि꣡नो꣢ ग꣣व्या꣡ सोमा꣢꣯सो अश्व꣣या꣢ । शु꣣क्रा꣡सो꣢ वीर꣣या꣡शवः꣢꣯ ॥१०३४॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡सृ꣢꣯क्षत । प्र । वा꣣जि꣡नः꣢ । ग꣣व्या꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । अ꣣श्वया । शु꣣क्रा꣡सः꣢ । वी꣣रया꣢ । आ꣣श꣡वः꣢ ॥१०३४॥
स्वर रहित मन्त्र
असृक्षत प्र वाजिनो गव्या सोमासो अश्वया । शुक्रासो वीरयाशवः ॥१०३४॥
स्वर रहित पद पाठ
असृक्षत । प्र । वाजिनः । गव्या । सोमासः । अश्वया । शुक्रासः । वीरया । आशवः ॥१०३४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1034
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ४८२ क्रमाङ्क पर भक्तिरस के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ ब्रह्मानन्द-रस का प्रवाह वर्णित है।
पदार्थ -
(वाजिनः) बलवान्, (शुक्रासः) पवित्र, (आशवः) शीघ्रगामी (सोमासः) ब्रह्मानन्द-रस (गव्या) इन्द्रियबलों की प्राप्ति की इच्छा से, (अश्वया) प्राण-बलों की प्राप्ति की इच्छा से और (वीरया) वीर-भावों की प्राप्ति की इच्छा से (प्र असृक्षत) परमेश्वर के पास से अभिषुत किये जा रहे हैं ॥१॥
भावार्थ - उपासक के आत्मा में जब ब्रह्मानन्द-रस की धाराएँ बहती हैं, तब मन, बुद्धि, प्राण, इन्द्रियों आदि का सात्त्विक बल स्वयं ही उपस्थित हो जाता है ॥१॥
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