Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1074
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
तो꣣शा꣡सा꣢ रथ꣣या꣡वा꣢ना वृत्र꣣ह꣡णाप꣢꣯राजिता । इ꣡न्द्रा꣢ग्नी꣣ त꣡स्य꣢ बोधतम् ॥१०७४॥
स्वर सहित पद पाठतोशा꣡सा꣢ । र꣣थया꣡वा꣢ना । र꣣थ । या꣡वा꣢꣯ना । वृ꣣त्रह꣡णा꣢ । वृ꣣त्र । ह꣡ना꣢꣯ । अ꣡प꣢꣯राजिता । अ । प꣣राजिता । इ꣡न्द्रा꣢꣯ग्नी । इ꣡न्द्र꣢꣯ । अ꣣ग्नीइ꣡ति꣢ । त꣡स्य꣢꣯ । बो꣣धतम् ॥१०७४॥
स्वर रहित मन्त्र
तोशासा रथयावाना वृत्रहणापराजिता । इन्द्राग्नी तस्य बोधतम् ॥१०७४॥
स्वर रहित पद पाठ
तोशासा । रथयावाना । रथ । यावाना । वृत्रहणा । वृत्र । हना । अपराजिता । अ । पराजिता । इन्द्राग्नी । इन्द्र । अग्नीइति । तस्य । बोधतम् ॥१०७४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1074
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - आगे फिर वही विषय वर्णित है।
पदार्थ -
हे (इन्द्राग्नी) जीवात्मा और प्राण एवं राजा और सेनापति ! (तोशासा) सन्तुष्टि करनेवाले, (रथयावाना) देहरूप रथ से वा विमान आदि यान से गमन करनेवाले, (वृत्रहणा) शत्रु, विघ्न, पाप आदि को नष्ट करनेवाले, (अपराजिता) पराजित न होनेवाले तुम दोनों (तस्य) उस-उस कर्म को (बोधतम्) करना वा कराना जानो ॥२॥
भावार्थ - जीवात्मा और प्राण एवं राजा और सेनापति को नेता बनाकर वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रिय उन्नति सबको सिद्ध करनी चाहिए ॥२॥
इस भाष्य को एडिट करें