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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1087
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
सु꣣रूपकृत्नु꣢मू꣣त꣡ये꣢ सु꣣दु꣡घा꣢मिव गो꣣दु꣡हे꣢ । जु꣣हू꣢मसि꣣ द्य꣡वि꣢द्यवि ॥१०८७॥
स्वर सहित पद पाठसु꣣रूपकृत्नु꣢म् । सु꣣रूप । कृत्नु꣢म् । ऊ꣣त꣡ये꣢ । सु꣣दु꣡घा꣢म् । सु꣣ । दु꣡घा꣢꣯म् । इ꣣व । गोदु꣡हे꣢ । गो꣣ । दु꣡हे꣢꣯ । जु꣣हूम꣡सि꣢ । द्य꣡वि꣢꣯द्यवि । द्य꣡वि꣢꣯ । द्य꣣वि ॥१०८७॥
स्वर रहित मन्त्र
सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव गोदुहे । जुहूमसि द्यविद्यवि ॥१०८७॥
स्वर रहित पद पाठ
सुरूपकृत्नुम् । सुरूप । कृत्नुम् । ऊतये । सुदुघाम् । सु । दुघाम् । इव । गोदुहे । गो । दुहे । जुहूमसि । द्यविद्यवि । द्यवि । द्यवि ॥१०८७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1087
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में १६० क्रमाङ्क पर परमात्मा, राजा और आचार्य के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ योगमार्ग के गुरु और शिल्पकार का आह्वान किया जा रहा है।
पदार्थ -
हम (ऊतये) योगमार्ग में प्रवेश के लिए और सुरूपवान् पदार्थों की प्राप्ति के लिए (सुरूपकृत्नुम्) शुभ रूपों को अर्थात् यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधियों को करानेवाले गुरु को और सुन्दर रूपवान् पदार्थों के रचयिता शिल्पकार को (द्यविद्यवि) प्रतिदिन (जुहूमसि) बुलाते हैं, (गोदुहे) गोदुग्ध के इच्छुक गाय दुहनेवाले के लिए (सुदुघाम् इव) जैसे दुधारू गाय को बुलाते हैं ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥
भावार्थ - जैसे गोदुग्ध पाने के लिए गाय बुलायी जाती है, वैसे ही योगाभ्यास के लिए योगी गुरु और शिल्प की उन्नति के लिए शिल्पकार को बुलाना चाहिए ॥१॥
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