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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1089
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣡था꣢ ते꣣ अ꣡न्त꣢मानां वि꣣द्या꣡म꣢ सुमती꣣ना꣢म् । मा꣢ नो꣣ अ꣡ति꣢ ख्य꣣ आ꣡ ग꣢हि ॥१०८९॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡थ꣢꣯ । ते꣣ । अ꣡न्त꣢꣯मानाम् । वि꣣द्या꣡म꣢ । सु꣣मतीना꣢म् । सु꣣ । मतीना꣢म् । मा । नः꣣ । अ꣡ति꣢꣯ । ख्यः꣣ । आ꣢ । ग꣣हि ॥१०८९॥
स्वर रहित मन्त्र
अथा ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम् । मा नो अति ख्य आ गहि ॥१०८९॥
स्वर रहित पद पाठ
अथ । ते । अन्तमानाम् । विद्याम । सुमतीनाम् । सु । मतीनाम् । मा । नः । अति । ख्यः । आ । गहि ॥१०८९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1089
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में पुनः उन्हीं को सम्बोधन किया गया है।
पदार्थ -
हे इन्द्र अर्थात् परमात्मा, राजा, आचार्य, योग के गुरु वा शिल्पकार ! (अथ) और हम (ते) आपकी (अन्तमानाम्) समीपतम (सुमतीनाम्) सुमतियों को (विद्याम) जानें। आप (नः अति) हमें लाँघकर (मा ख्यः) अपना उपदेश मत करो, प्रत्युत (आगहि) हमारे पास आओ और आकर अपनी देनों का पात्र हमें बनाओ ॥३॥
भावार्थ - परमात्मा, राजा, आचार्य, योगी और शिल्पी के जो ज्ञान और कर्म हैं, उनसे उपकार लेकर अपने आपको उन्नत करना चाहिए ॥३॥
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