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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1099
ऋषिः - पर्वतनारदौ काण्वौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
4

सं꣢ व꣣त्स꣡ इ꣢व मा꣣तृ꣢भि꣣रि꣡न्दु꣢र्हिन्वा꣣नो꣡ अ꣢ज्यते । दे꣣वावी꣡र्मदो꣢꣯ म꣣ति꣢भिः꣣ प꣡रि꣢ष्कृतः ॥१०९९॥

स्वर सहित पद पाठ

सम् । व꣣त्सः꣢ । इ꣣व । मातृ꣡भिः꣢ । इ꣡न्दुः꣢꣯ । हि꣣न्वानः꣢ । अ꣣ज्यते । देवावीः꣢ । दे꣣व । अवीः꣢ । म꣡दः꣢꣯ । म꣣ति꣡भिः꣢ । प꣡रि꣢꣯ष्कृतः । प꣡रि꣢꣯ । कृ꣣तः ॥१०९९॥


स्वर रहित मन्त्र

सं वत्स इव मातृभिरिन्दुर्हिन्वानो अज्यते । देवावीर्मदो मतिभिः परिष्कृतः ॥१०९९॥


स्वर रहित पद पाठ

सम् । वत्सः । इव । मातृभिः । इन्दुः । हिन्वानः । अज्यते । देवावीः । देव । अवीः । मदः । मतिभिः । परिष्कृतः । परि । कृतः ॥१०९९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1099
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(देवावीः) सदाचारी विद्वानों का रक्षक, (मदः) उत्साह देनेवाला, (इन्दुः) रस से सराबोर करनेवाला, रस का भण्डार परमेश्वर (हिन्वानः) स्तोताओं को शुभ गुण-कर्मों में प्रेरित करता हुआ, (मातृभिः) गौओं द्वारा (परिष्कृतः) जीभ से चाट कर स्वच्छ किये गए (वत्सः इव) बछड़े के समान (मतिभिः) स्तुतियों से (परिष्कृतः) अलङ्कृत होकर (समज्यते) अन्तरात्मा में प्रकट हो जाता है ॥२॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥

भावार्थ - गौओं द्वारा जीभ से चाटकर बछड़ा जैसे अलङ्कृत किया जाता है, वैसे ही स्तोताओं द्वारा स्तुतियों से परमेश्वर अलङ्कृत किया जाता है। तभी छिपा बैठा हुआ वह उपासक के अन्तरात्मा में प्रकट होता है ॥२॥

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