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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1148
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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इ꣡न्द्रा या꣢꣯हि꣣ तू꣡तु꣢जान꣣ उ꣢प꣣ ब्र꣡ह्मा꣢णि हरिवः । सु꣣ते꣡ द꣢धिष्व न꣣श्च꣡नः꣢ ॥११४८॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्द्र꣢꣯ । आ । या꣣हि । तू꣡तु꣢꣯जानः । उ꣡प꣢꣯ । ब्र꣡ह्मा꣢꣯णि । ह꣣रिवः । सुते꣢ । द꣣धिष्व । नः । च꣡नः꣢꣯ ॥११४८॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रह्माणि हरिवः । सुते दधिष्व नश्चनः ॥११४८॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्र । आ । याहि । तूतुजानः । उप । ब्रह्माणि । हरिवः । सुते । दधिष्व । नः । चनः ॥११४८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1148
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
हे (हरिवः) परस्पर आकर्षणवाले सूर्य, चन्द्र, पृथिवी आदि लोकों के स्वामी (इन्द्र) जगदीश्वर ! आप (तूतुजानः) शीघ्रता करते हुए, हमारे (ब्रह्माणि) स्तोत्रों के (उप आ याहि) समीप आओ। (नः) हमारे (सुते) पुत्र आदि सन्तान में (चनः) उपासना से मिलनेवाला आनन्द-रस (दधिष्व) धारण कराओ ॥३॥

भावार्थ - मनुष्यों को चाहिए कि सपरिवार परमेश्वरोपासना का आनन्द-रस प्रतिदिन प्राप्त करके दैनिक कार्यों में प्रवृत्त हों ॥३॥

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