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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1188
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
प꣡व꣢मानमवस्यवो꣣ वि꣡प्र꣢म꣣भि꣡ प्र गा꣢꣯यत । सु꣣ष्वाणं꣢ दे꣣व꣡वी꣢तये ॥११८८॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानम् । अ꣣वस्यवः । वि꣡प्र꣢꣯म् । वि । प्र꣣म् । अभि꣢ । प्र । गा꣣यत । सुष्वाण꣢म् । दे꣣व꣡वी꣢तये । दे꣣व꣢ । वी꣣तये ॥११८८॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानमवस्यवो विप्रमभि प्र गायत । सुष्वाणं देववीतये ॥११८८॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानम् । अवस्यवः । विप्रम् । वि । प्रम् । अभि । प्र । गायत । सुष्वाणम् । देववीतये । देव । वीतये ॥११८८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1188
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - अब मनुष्यों को परमात्मा की स्तुति के लिये प्रेरित करते हैं।
पदार्थ -
हे (अवस्यवः) रक्षा चाहनेवाले मनुष्यो ! तुम (देववीतये) दिव्यगुणों की प्राप्ति के लिए (पवमानम्) पवित्र करनेवाले, (विप्रम्) विशेषरूप से तृप्ति देनेवाले व पूर्ण करनेवाले, (सुष्वाणम्) आनन्द-रस को अभिषुत करनेवाले परमात्मा को (अभि) लक्ष्य करके (प्र गायत) उत्कृष्ट गान गाओ ॥२॥
भावार्थ - परमात्मा का गुणगान करने और ध्यान करने से उपासक लोग रक्षा, पवित्रता, तृप्ति, पूर्णता और आनन्द प्राप्त करते हैं ॥२॥
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