Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1196
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
सो꣡मा꣢ असृग्र꣣मि꣡न्द꣢वः सु꣣ता꣢ ऋ꣣त꣢स्य꣣ धा꣡र꣢या । इ꣡न्द्रा꣢य꣣ म꣡धु꣢मत्तमाः ॥११९६॥
स्वर सहित पद पाठसो꣡माः꣢꣯ । अ꣣सृग्रम् । इ꣡न्द꣢꣯वः । सु꣣ताः꣢ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । धा꣡र꣢꣯या । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । म꣡धु꣢꣯मत्तमाः ॥११९६॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमा असृग्रमिन्दवः सुता ऋतस्य धारया । इन्द्राय मधुमत्तमाः ॥११९६॥
स्वर रहित पद पाठ
सोमाः । असृग्रम् । इन्दवः । सुताः । ऋतस्य । धारया । इन्द्राय । मधुमत्तमाः ॥११९६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1196
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - प्रारम्भ में ब्रह्मानन्द-रसों का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
(सुताः) रिसाये हुए, (इन्दवः) भिगोनेवाले, (मधुमत्तमाः) अतिशय मधुर (सोमाः) परमानन्द-रस (ऋतस्य) सत्य की (धारया) धारा के साथ (इन्द्राय) जीवात्मा के लिए (असृग्रम्) छोड़े जा रहे हैं ॥१॥
भावार्थ - ब्रह्मानन्द में डूबा हुआ ही मनुष्य उसकी मधुरता का अनुभव कर सकता है ॥१॥
इस भाष्य को एडिट करें