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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1217
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣡यु꣢क्त꣣ सू꣢र꣣ ए꣡त꣢शं꣣ प꣡व꣢मानो म꣣ना꣡वधि꣢꣯ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षेण꣣ या꣡त꣢वे ॥१२१७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡यु꣢꣯क्त । सू꣡रः꣢꣯ । ए꣡त꣢꣯शम् । प꣡व꣢꣯मानः । म꣣नौ꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षेण । या꣡त꣢꣯वे ॥१२१७॥
स्वर रहित मन्त्र
अयुक्त सूर एतशं पवमानो मनावधि । अन्तरिक्षेण यातवे ॥१२१७॥
स्वर रहित पद पाठ
अयुक्त । सूरः । एतशम् । पवमानः । मनौ । अधि । अन्तरिक्षेण । यातवे ॥१२१७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1217
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में परमात्मा के कर्तृत्व का वर्णन है।
पदार्थ -
(सूरः) प्रेरक (पवमानः) क्रियाशील सोम परमेश्वर ने (अन्तरिक्षेण) आकाशमार्ग से (यातवे) यात्रा करने के लिए (मनौ अधि) मनुष्य के अन्दर (एतशम्) प्राणरूप अश्व को (अयुक्त) नियुक्त किया हुआ है ॥२॥
भावार्थ - परमात्मा के साथ योग करके और प्राणसिद्धि प्राप्त करके मनुष्य आकाशमार्ग से जाना-आना कर सकते हैं ॥२॥
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