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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1232
ऋषिः - देवातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
5
य꣢द्वा꣣ रु꣢मे꣣ रु꣡श꣢मे꣣ श्या꣡व꣢के꣣ कृ꣢प꣣ इ꣡न्द्र꣢ मा꣣द꣡य꣢से꣣ स꣡चा꣢ । क꣡ण्वा꣢सस्त्वा꣣ स्तो꣡मे꣢भि꣣र्ब्र꣡ह्म꣢वाहस꣣ इ꣡न्द्रा य꣢꣯च्छ꣣न्त्या꣡ ग꣢हि ॥१२३२॥
स्वर सहित पद पाठयत् । वा꣣ । रु꣡मे꣢꣯ । रु꣡श꣢꣯मे । श्या꣡व꣢꣯के । कृ꣡पे꣢꣯ । इ꣡न्द्र꣢꣯ । मा꣣द꣡य꣢से । स꣡चा꣢꣯ । क꣡ण्वा꣢꣯सः । त्वा꣣ । स्तो꣡मे꣢꣯भिः । ब्र꣡ह्म꣢꣯वाहसः । ब्र꣡ह्म꣢꣯ । वा꣣हसः । इ꣡न्द्र꣢꣯ । आ । य꣣च्छन्ति । आ꣢ । ग꣢हि ॥१२३२॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वा रुमे रुशमे श्यावके कृप इन्द्र मादयसे सचा । कण्वासस्त्वा स्तोमेभिर्ब्रह्मवाहस इन्द्रा यच्छन्त्या गहि ॥१२३२॥
स्वर रहित पद पाठ
यत् । वा । रुमे । रुशमे । श्यावके । कृपे । इन्द्र । मादयसे । सचा । कण्वासः । त्वा । स्तोमेभिः । ब्रह्मवाहसः । ब्रह्म । वाहसः । इन्द्र । आ । यच्छन्ति । आ । गहि ॥१२३२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1232
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में फिर परमात्मा और राजा का विषय कहा गया है।
पदार्थ -
(यद् वा) और हे (इन्द्र) परमैश्वर्यशाली परमात्मन् वा वीर राजन् ! आप (रुमे) स्तोता वा उपदेशक को, (रुशमे) हिंसकों के हिंसक को, (श्यावके) कर्मयोगी को और (कृपे) दीनों पर दयालु वा समर्थ मनुष्य को (सचा) एक साथ ही (मादयसे) तृप्ति प्रदान करते हो। हे (इन्द्र) परमात्मन् वा राजन् ! (ब्रह्मवाहसः) स्तुति करनेवाले वा ज्ञान देनेवाले (कण्वासः) मेधावी जन (स्तोमेभिः) स्तोत्रों से वा उद्बोधन-गीतों से (त्वा) आपको (आ यच्छन्ति) वश में कर लेते हैं। आप (आगहि) हमारे पास आओ ॥२॥
भावार्थ - परमेश्वर और राजा उन्हीं के सहायक होते हैं, जो योगाभ्यासी, दूसरों को उपदेश देनेवाले, कर्मशूर, दीनों पर दयालु और शक्तिशाली होते हैं ॥२॥ सायणाचार्य ने इस मन्त्र की व्याख्या में रुम, रुशम, श्यावक और कृप नामक चार राजा स्वीकार किये हैं और ‘कण्वासः’ से कण्वगोत्री ऋषि लिये हैं, वह असङ्गत है, क्योंकि सृष्टि के आदि में प्रकट हुए वेदों में परवर्ती ऐतिहासिक पुरुषों का उल्लेख नहीं हो सकता ॥
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