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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1267
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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ए꣣ष꣢ पु꣣रु꣡ धि꣢यायते बृह꣣ते꣢ दे꣣व꣡ता꣢तये । य꣢त्रा꣣मृ꣡ता꣢स꣣ आ꣡श꣢त ॥१२६७॥

स्वर सहित पद पाठ

ए꣣षः꣢ । पु꣣रु꣢ । धि꣣यायते । बृहते꣢ । दे꣣व꣡ता꣢तये । य꣡त्र꣢꣯ । अ꣣मृ꣡ता꣢सः । अ꣣ । मृ꣡ता꣢꣯सः । आ꣡श꣢꣯त ॥१२६७॥


स्वर रहित मन्त्र

एष पुरु धियायते बृहते देवतातये । यत्रामृतास आशत ॥१२६७॥


स्वर रहित पद पाठ

एषः । पुरु । धियायते । बृहते । देवतातये । यत्र । अमृतासः । अ । मृतासः । आशत ॥१२६७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1267
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(एषः) यह सोम जीवात्मा (बृहते) महान् (देवतातये) मोक्ष पद के लाभार्थ (पुरु) बहुत अधिक (धियायते) ऋतम्भरा प्रज्ञा को पाना चाहता है, (यत्र) जिस मोक्षपद में (अमृतासः) पूर्व अमर जीवात्माएँ (आशते) विद्यमान हैं ॥२॥

भावार्थ - मोक्ष की प्राप्ति के लिए मोक्ष की अभिलाषा, योगाभ्यास तथा सदाचार की अपेक्षा होती है ॥२॥

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