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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1273
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
ए꣣त꣢मु꣣ त्यं꣢꣫ दश꣣ क्षि꣢पो꣣ ह꣡रि꣢ꣳ हिन्वन्ति꣣ या꣡त꣢वे । स्वा꣣युधं꣢ म꣣दि꣡न्त꣢मम् ॥१२७३॥
स्वर सहित पद पाठए꣣त꣢म् । उ꣣ । त्य꣢म् । द꣡श꣢꣯ । क्षि꣡पः꣢꣯ । ह꣡रि꣢꣯म् । हि꣣न्वन्ति । या꣡त꣢꣯वे । स्वा꣣युध꣢म् । सु꣣ । आयुध꣢म् । म꣣दि꣡न्त꣢मम् ॥१२७३॥
स्वर रहित मन्त्र
एतमु त्यं दश क्षिपो हरिꣳ हिन्वन्ति यातवे । स्वायुधं मदिन्तमम् ॥१२७३॥
स्वर रहित पद पाठ
एतम् । उ । त्यम् । दश । क्षिपः । हरिम् । हिन्वन्ति । यातवे । स्वायुधम् । सु । आयुधम् । मदिन्तमम् ॥१२७३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1273
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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विषय - अगले मन्त्र में फिर देहधारी जीवात्मा का विषय है।
पदार्थ -
(एतम् उ) इस (त्यम्) उस (स्वायुधम्) उत्तम शस्त्रास्त्रों से युक्त (मदिन्तमम्) अतिशय उत्साहयुक्त (हरिम्) मनुष्य को (दश क्षिपः) दस प्रेरक प्राण वा दस प्रेरक इन्द्रियाँ (यातवे) गति करने के लिए अर्थात् ज्ञानसम्पादन तथा पुरुषार्थ करने के लिए (हिन्वन्ति) प्रेरित करती हैं ॥८॥
भावार्थ - जैसे चाबुकें घोड़े को चलने के लिए प्रेरित करती हैं, वैसे ही दस प्राण वा दस इन्द्रियाँ देहधारी जीवात्मा को कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं ॥८॥ इस खण्ड में आत्मशुद्धि, परमात्मानुभव और मोक्ष के विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ दशम अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥
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