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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1288
ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
ए꣣ष꣢꣫ नृभि꣣र्वि꣡ नी꣢यते दि꣣वो꣢ मू꣣र्धा꣡ वृषा꣢꣯ सु꣣तः꣢ । सो꣢मो꣣ व꣡ने꣢षु विश्व꣣वि꣢त् ॥१२८८॥
स्वर सहित पद पाठए꣣षः꣢ । नृ꣡भिः꣢꣯ । वि । नी꣣यते । दिवः꣢ । मू꣣र्धा꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । सु꣣तः꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । व꣡ने꣢꣯षु । वि꣡श्ववि꣢त् । वि꣣श्व । वि꣢त् ॥१२८८॥
स्वर रहित मन्त्र
एष नृभिर्वि नीयते दिवो मूर्धा वृषा सुतः । सोमो वनेषु विश्ववित् ॥१२८८॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः । नृभिः । वि । नीयते । दिवः । मूर्धा । वृषा । सुतः । सोमः । वनेषु । विश्ववित् । विश्व । वित् ॥१२८८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1288
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - आगे फिर परमात्मा का ही विषय है।
पदार्थ -
(दिवः मूर्धा) तेज का शिरोमणि, (वृषा) सुख की वर्षा करनेवाला, (विश्ववित्) सर्वज्ञ, सर्वान्तर्यामी, (वनेषु) एकान्त जंगलों में (नृभिः) उपासक मनुष्यों से (सुतः) ध्यान द्वारा प्रकट किया गया (एषः) यह (सोमः) रसमय परमेश्वर, उनके द्वारा (वि नीयते) विशेष रूप से जीवन में लाया जाता है ॥३॥
भावार्थ - उपासक लोग परमात्मा का साक्षात्कार करके उसे अपने जीवन का अङ्ग बना लें ॥३॥
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