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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1308
ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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क꣢ण्वा꣣ इ꣢न्द्रं꣣ य꣡दक्र꣢꣯त꣣ स्तो꣡मै꣢र्य꣣ज्ञ꣢स्य꣣ सा꣡ध꣢नम् । जा꣣मि꣡ ब्रु꣢व꣣त आ꣡यु꣢धा ॥१३०८॥

स्वर सहित पद पाठ

क꣡ण्वाः꣢꣯ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । यत् । अ꣡क्र꣢꣯त । स्तो꣡मैः꣢꣯ । य꣣ज्ञ꣡स्य꣢ । सा꣡ध꣢꣯नम् । जा꣣मि꣢ । ब्रु꣣वते । आ꣡यु꣢꣯धा ॥१३०८॥


स्वर रहित मन्त्र

कण्वा इन्द्रं यदक्रत स्तोमैर्यज्ञस्य साधनम् । जामि ब्रुवत आयुधा ॥१३०८॥


स्वर रहित पद पाठ

कण्वाः । इन्द्रम् । यत् । अक्रत । स्तोमैः । यज्ञस्य । साधनम् । जामि । ब्रुवते । आयुधा ॥१३०८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1308
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(यत्) जब (कण्वाः) मेधावी स्तोता लोग (इन्द्रम्) विघ्ननाशक, परमैश्वर्यवान् परमात्मा को (स्तोमैः) स्तोत्रों से (यज्ञस्य) अपने १०० वर्ष चलनेवाले जीवन-यज्ञ का (साधनम्) साधक (अक्रत) बना लेते हैं, तब वे (आयुधा) रक्षा के साधनभूत शस्त्रास्त्रों को (जामि) अनावश्यक (ब्रुवते) कहने लगते हैं अर्थात् जीवन-यज्ञ को तो परमात्मा ने ही सिद्ध कर दिया, इन संगृहीत किये हुए शस्त्रास्त्रों से क्या लाभ? इस प्रकार हथियारों को व्यर्थ बताने लगते हैं ॥२॥

भावार्थ - परमात्मा के प्रति आत्म-समर्पण करके उसका रक्षण सबको प्राप्त करना चाहिए ॥२॥

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