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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1333
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
5
प्र꣡ ते꣢ सो꣣ता꣢रो꣣ र꣢सं꣣ म꣡दा꣢य पु꣣न꣢न्ति꣣ सो꣡मं꣢ म꣣हे꣢ द्यु꣣म्ना꣡य꣢ ॥१३३३॥
स्वर सहित पद पाठप्र । ते꣣ । सोता꣡रः꣢ । र꣡स꣢꣯म् । म꣡दा꣢꣯य । पु꣣न꣡न्ति꣢ । सो꣡म꣢꣯म् । म꣣हे꣢ । द्यु꣣म्ना꣡य꣢ । शि꣡शु꣢꣯म् ॥१३३३॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र ते सोतारो रसं मदाय पुनन्ति सोमं महे द्युम्नाय ॥१३३३॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । ते । सोतारः । रसम् । मदाय । पुनन्ति । सोमम् । महे । द्युम्नाय । शिशुम् ॥१३३३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1333
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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विषय - आगे फिर उसी विषय का वर्णन है।
पदार्थ -
हे विद्यार्थी ! (सोतारः) द्वितीय जन्म देनेवाले गुरु लोग (सोमं रसम्) ज्ञान-रस को (ते) तेरे (मदाय) आनन्द के लिए और (महे द्युम्नाय) महान् यश के लिए (प्र पुनन्ति) भली-भाँति पवित्र कर रहे हैं ॥२॥
भावार्थ - परोपकारक, पवित्र, निर्दोष विद्या से ही मनुष्य आनन्दवान् और यशस्वी होता है ॥२॥
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