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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1357
ऋषिः - पराशरः शाक्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
6
आ꣡ जागृ꣢꣯वि꣣र्वि꣡प्र꣢ ऋ꣣तं꣢ म꣢ती꣣ना꣡ꣳ सोमः꣢꣯ पुना꣣नो꣡ अ꣢सदच्च꣣मू꣡षु꣢ । स꣡प꣢न्ति꣣ यं꣡ मि꣢थु꣣ना꣢सो꣣ नि꣡का꣢मा अध्व꣣र्य꣡वो꣢ रथि꣣रा꣡सः꣢ सु꣣ह꣡स्ताः꣢ ॥१३५७॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । जा꣡गृ꣢꣯विः । वि꣡प्रः꣢꣯ । वि । प्रः꣣ । ऋत꣢म् । म꣣तीना꣢म् । सो꣡मः꣢꣯ । पु꣣नानः꣢ । अ꣣सदत् । चमू꣡षु꣢ । स꣡प꣢꣯न्ति । यम् । मि꣣थुना꣡सः꣢ । नि꣡का꣢꣯माः । नि । का꣣माः । अध्वर्य꣡वः꣢ । र꣣थिरा꣡सः꣢ । सु꣣ह꣡स्ताः꣢ । सु꣣ । ह꣡स्ताः꣢꣯ ॥१३५७॥
स्वर रहित मन्त्र
आ जागृविर्विप्र ऋतं मतीनाꣳ सोमः पुनानो असदच्चमूषु । सपन्ति यं मिथुनासो निकामा अध्वर्यवो रथिरासः सुहस्ताः ॥१३५७॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । जागृविः । विप्रः । वि । प्रः । ऋतम् । मतीनाम् । सोमः । पुनानः । असदत् । चमूषु । सपन्ति । यम् । मिथुनासः । निकामाः । नि । कामाः । अध्वर्यवः । रथिरासः । सुहस्ताः । सु । हस्ताः ॥१३५७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1357
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम मन्त्र में परमात्मा का विषय है।
पदार्थ -
(जागृविः) जागरूक, (विप्रः) विशेषरूप से पूर्णता प्रदान करनेवाला, (मतीनाम्) बुद्धियों के (ऋतम्) व्यापार को (पुनानः) पवित्र करनेवाला, (सोमः) सत्कर्मों की प्रेरणा देनेवाला परमेश्वर (चमूषु) आत्मा, मन, प्राण आदि में वा सूर्य, चन्द्र, भूमण्डल आदि लोकों में (आ असदत्) नियामकरूप से स्थित है, (यम्) जिस परमेश्वर को (निकामाः) निरन्तर पाने की लौ लगाये हुए, (रथिरासः) उत्कृष्ट शरीर-रथवाले, (सुहस्ताः) सिद्धहस्त (अध्वर्यवः) उपासना-यज्ञ के इच्छुक (मिथुनासः) स्त्री-पुरुष (सपन्ति) प्राप्त कर लेते हैं ॥१॥
भावार्थ - शरीर और बाह्य जगत् का जो सञ्चालन करता है, उस जगदीश्वर की सबको भली-भाँति उपासना करनी चाहिए ॥१॥
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