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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1371
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
6

उ꣡पो꣢ म꣣तिः꣢ पृ꣣च्य꣡ते꣢ सि꣣च्य꣢ते꣣ म꣡धु꣢ म꣣न्द्रा꣡ज꣢नी चोदते अ꣣न्त꣢रा꣣स꣡नि꣢ । प꣡व꣢मानः सन्त꣣निः꣡ सु꣢न्व꣣ता꣡मि꣢व꣣ म꣡धु꣢मान्द्र꣣प्सः꣢꣫ परि꣣ वा꣡र꣢मर्षति ॥१३७१॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣡प꣢꣯ । उ꣣ । मतिः꣢ । पृ꣣च्य꣡ते꣢ । सि꣣च्य꣡ते꣢ । म꣡धु꣢꣯ । म꣣न्द्रा꣡ज꣢नी । म꣣न्द्र । अ꣡ज꣢꣯नी । चो꣣दते । अन्तः꣢ । आ꣣स꣡नि꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । स꣣न्तनिः꣢ । स꣣म् । तनिः꣢ । सु꣣न्वता꣢म् । इ꣣व । म꣡धु꣢꣯मान् । द्र꣡प्सः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । वा꣡र꣢꣯म् । अ꣣र्षति ॥१३७१॥


स्वर रहित मन्त्र

उपो मतिः पृच्यते सिच्यते मधु मन्द्राजनी चोदते अन्तरासनि । पवमानः सन्तनिः सुन्वतामिव मधुमान्द्रप्सः परि वारमर्षति ॥१३७१॥


स्वर रहित पद पाठ

उप । उ । मतिः । पृच्यते । सिच्यते । मधु । मन्द्राजनी । मन्द्र । अजनी । चोदते । अन्तः । आसनि । पवमानः । सन्तनिः । सम् । तनिः । सुन्वताम् । इव । मधुमान् । द्रप्सः । परि । वारम् । अर्षति ॥१३७१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1371
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(मतिः) बुद्धि (उपपृच्यते उ) प्राप्त हो रही है, (मधु) माधुर्य (सिच्यते) सींचा जा रहा है, (आसनि अन्तः) मुख के अन्दर (मन्द्राजनी) आनन्दजनक शब्दों ओंकार, व्याहृति, गायत्री आदि को प्रेरित करनेवाली जिह्वा (चोदते) स्तुति-मन्त्रों को प्रेरित कर रही है। (पवमानः) बहता हुआ अथवा अन्तःकरण को पवित्र करता हुआ (सन्तनिः) भली-भाँति फैलनेवाला, (मधुमान्) मधुर (द्रप्सः) ब्रह्मानन्द-रस (वारम्) दोष-निवारक अन्तरात्मा को (परि अर्षति) प्राप्त हो रहा है, (सुन्वताम् इव) जैसे यजमानों की (पवमानः) गुरुकुल-निवास से स्वयं को पवित्र करती हुई, (मधुमान्) मधुर ज्ञान से वा मधुर व्यवहार से युक्त (सन्तनिः) सन्तान स्नातक होकर (वारम्) जन-समाज को (परि अर्षति) प्राप्त करती है ॥२॥ यहाँ श्लिष्टोपमालङ्कार है। उत्तरार्धगत कारण से पूर्वार्धगत कार्य का समर्थन होने से अर्थान्तरन्यास है। प्, म्, न्, त्, स् की अलग-अलग आवृत्ति में वृत्त्यनुप्रास है। ‘च्यते’ की आवृत्ति में यमक है। शान्त-रस है ॥२॥

भावार्थ - उपासक के अन्तरात्मा में ब्रह्मानन्द-रस का धाराप्रवाह होने पर विलक्षण मति और विलक्षण माधुर्य अनुभूत होता है ॥२॥

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