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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1373
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - अग्निः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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अ꣣ग्निं꣢꣫ नरो꣣ दी꣡धि꣢तिभिर꣣र꣢ण्यो꣣र्ह꣡स्त꣢च्युतं जनयत प्रश꣣स्त꣢म् । दू꣣रेदृ꣡शं꣢ गृ꣣ह꣡प꣢तिमथ꣣व्यु꣢म् ॥१३७३॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣ग्नि꣢म् । न꣡रः꣢꣯ । दी꣡धि꣢꣯तिभिः । अ꣣र꣡ण्योः꣢ । ह꣡स्त꣢꣯च्युतम् । ह꣡स्त꣢꣯ । च्यु꣣तम् । जनयत । प्रशस्त꣢म् । प्र꣣ । शस्त꣢म् । दू꣣रेदृ꣡श꣢म् । दू꣣रे । दृ꣡श꣢꣯म् । गृ꣣ह꣡प꣢तिम् । गृ꣣ह꣢ । प꣣तिम् । अथव्यु꣢म् । अ꣣ । थव्यु꣢म् ॥१३७३॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्निं नरो दीधितिभिररण्योर्हस्तच्युतं जनयत प्रशस्तम् । दूरेदृशं गृहपतिमथव्युम् ॥१३७३॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्निम् । नरः । दीधितिभिः । अरण्योः । हस्तच्युतम् । हस्त । च्युतम् । जनयत । प्रशस्तम् । प्र । शस्तम् । दूरेदृशम् । दूरे । दृशम् । गृहपतिम् । गृह । पतिम् । अथव्युम् । अ । थव्युम् ॥१३७३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1373
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
प्रथम—जीवात्मा के पक्ष में। हे मनुष्यो ! (नरः) पौरुषवान् तुम (अरण्योः) क्रियाशील मन और बुद्धि की (दीधितिभिः) क्रियाओं से अर्थात् मन द्वारा कृत संकल्पों से और बुद्धि द्वारा कृत निश्चयों से (अग्निम्) शरीर के नेता जीवात्मा को (हस्तच्युतम्) हाथों से शत्रुओं को पराजित करनेवाला, (प्रशस्तम्) प्रशंसा का पात्र, (दूरेदृशम्) दूरदर्शी, (गृहपतिम्) देह-सदन का पालनकर्ता और (अथव्युम्) विचलित न होनेवाला (जनयत) करो ॥ द्वितीय—बिजली के पक्ष में। हे मनुष्यो ! (नरः) विद्युत्-विद्या की उन्नति करनेवाले तुम (दीधितिभिः) सूर्य-किरणों के द्वारा (अरण्योः) बिजली उत्पन्न करनेवाले यन्त्रों के (हस्तच्युतम्) संघर्षण-पूर्वक (प्रशस्तम्) उत्कृष्ट, (दूरेदृशम्) दूर तक प्रकाश करनेवाले, (गृहपतिम्) घरों के रक्षक, (अथव्युम्) गतिशील (अग्निम्) बिजली रूप अग्नि को (जनयत) उत्पन्न करो ॥१॥ यहाँ श्लेषालङ्कार है ॥१॥

भावार्थ - मनुष्यों को चाहिए कि संकल्प के साधन मन को और निश्चय के साधन बुद्धि को प्रयुक्त कर अपने आत्मा को जगाएँ और विद्युत्-विद्या के विशेषज्ञ शिल्पियों को चाहिए कि सूर्य-किरणों द्वारा यन्त्रों को चलाकर, बिजली उत्पन्न करके घर आदि में प्रकाश करें, बिजली के तारों द्वारा दूर समाचार भेजें तथा विमान आदि यानों को चलाएँ ॥१॥

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