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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1394
ऋषिः - ऋजिश्वा भारद्वाजः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - काकुभः प्रगाथः (विषमा ककुप्, समा सतोबृहती) स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
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आ꣡ सो꣢ता꣣ प꣡रि꣢ षिञ्च꣣ता꣢श्वं꣣ न꣡ स्तोम꣢꣯म꣣प्तु꣡र꣢ꣳ रज꣣स्तु꣡र꣢म् । व꣣नप्रक्ष꣡मु꣢द꣣प्रु꣡त꣢म् ॥१३९४॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣢ । सो꣣त । प꣡रि꣢꣯ । सि꣣ञ्चत । अ꣡श्व꣢꣯म् । न । स्तो꣡म꣢꣯म् । अ꣣प्तु꣡र꣢म् । र꣣जस्तु꣡र꣢म् । व꣣नप्रक्ष꣢म् । व꣣न । प्रक्ष꣢म् । उ꣣दप्रु꣡त꣢म् । उ꣣द । प्रु꣡त꣢꣯म् ॥१३९४॥


स्वर रहित मन्त्र

आ सोता परि षिञ्चताश्वं न स्तोममप्तुरꣳ रजस्तुरम् । वनप्रक्षमुदप्रुतम् ॥१३९४॥


स्वर रहित पद पाठ

आ । सोत । परि । सिञ्चत । अश्वम् । न । स्तोमम् । अप्तुरम् । रजस्तुरम् । वनप्रक्षम् । वन । प्रक्षम् । उदप्रुतम् । उद । प्रुतम् ॥१३९४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1394
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
हे मनुष्यो ! तुम (स्तोमम्) स्तुति करने योग्य, (अप्तुरम्) प्राणों में गति देनेवाले, (रजस्तुरम्) पृथिवी, सूर्य आदि लोकों को गति देनेवाले, (वनप्रक्षम्) जंगलों को वर्षा-जल से सींचनेवाले, (उदप्रुतम्) जलों को बहानेवाले सोम-नामक परमात्मा को (आ सोत) दुहो अर्थात् उससे आनन्द-रस प्राप्त करो और उसे (अश्वं न) बादल के समान (परि सिञ्चत) चारों ओर बरसाओ ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥

भावार्थ - जैसे बादल भूमि को जल से सींचता है, वैसे ही उपासकों को चाहिए कि ब्रह्मानन्द से अपने तथा दूसरों के आत्मा को पुनः-पुनः सींचें ॥१॥

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