Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1398
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
ब्र꣡ह्म꣢ प्र꣣जा꣢व꣣दा꣡ भ꣢र꣣ जा꣡त꣢वेदो꣣ वि꣡च꣢र्षणे । अ꣢ग्ने꣣ य꣢द्दी꣣द꣡य꣢द्दि꣣वि꣢ ॥१३९८॥
स्वर सहित पद पाठब्र꣡ह्म꣢꣯ । प्र꣣जा꣡व꣢त् । प्र꣡ । जा꣡व꣢꣯त् । आ । भ꣣र । जा꣡त꣢꣯वेदः । जा꣡त꣢꣯ । वे꣡दः । वि꣡च꣢꣯र्षणे । वि । च꣣र्षणे । अ꣡ग्ने꣢꣯ । यत् । दी꣣द꣡य꣢त् । दि꣣वि꣢ ॥१३९८॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्म प्रजावदा भर जातवेदो विचर्षणे । अग्ने यद्दीदयद्दिवि ॥१३९८॥
स्वर रहित पद पाठ
ब्रह्म । प्रजावत् । प्र । जावत् । आ । भर । जातवेदः । जात । वेदः । विचर्षणे । वि । चर्षणे । अग्ने । यत् । दीदयत् । दिवि ॥१३९८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1398
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - अगले मन्त्र में भी आचार्य का ही विषय है।
पदार्थ -
हे (विचर्षणे) शिष्यों का हित-अहित देखनेवाले, (जातवेदः) उत्पन्न पदार्थों वा विद्याओं के ज्ञाता (अग्ने) आचार्यवर ! आप, (प्रजावत्) उत्पन्न सृष्टि के विज्ञान से युक्त (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञान को (आभर) हमें प्रदान करो, (यत्) जो (दिवि) हमारे तेजस्वी आत्मा में (दीदयत्) चमके ॥३॥
भावार्थ - गुरु लोग विद्यार्थियों को सृष्टिविज्ञान, पदार्थविज्ञान, भूगोल-खगोल आदि के विज्ञान और शिल्पविज्ञान के साथ ब्रह्मविज्ञान भी सिखाएँ ॥३॥
इस भाष्य को एडिट करें