Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1400
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
9
भ꣣द्रा꣡ वस्त्रा꣢꣯ सम꣣न्या꣢३꣱व꣡सा꣢नो म꣣हा꣢न्क꣣वि꣢र्नि꣣व꣡च꣢नानि꣣ श꣡ꣳस꣢न् । आ꣡ व꣢च्यस्व च꣣꣬म्वोः꣢꣯ पू꣣य꣡मा꣢नो विचक्ष꣣णो꣡ जागृ꣢꣯विर्दे꣣व꣡वी꣢तौ ॥१४००॥
स्वर सहित पद पाठभ꣣द्रा꣢ । व꣡स्त्रा꣢꣯ । स꣣मन्या꣢ । व꣡सा꣢꣯नः । म꣣हा꣢न् । क꣣विः꣢ । नि꣣व꣡च꣢नानि । नि꣣ । व꣡च꣢꣯नानि । श꣡ꣳस꣢꣯न् । आ । व꣣च्यस्व । च꣣म्वोः꣢ । पू꣣य꣡मा꣢नः । वि꣣चक्षणः꣢ । वि꣣ । चक्षणः꣢ । जा꣡गृ꣢꣯विः । दे꣣व꣡वी꣢तौ । दे꣣व꣢ । वी꣣तौ ॥१४००॥
स्वर रहित मन्त्र
भद्रा वस्त्रा समन्या३वसानो महान्कविर्निवचनानि शꣳसन् । आ वच्यस्व चम्वोः पूयमानो विचक्षणो जागृविर्देववीतौ ॥१४००॥
स्वर रहित पद पाठ
भद्रा । वस्त्रा । समन्या । वसानः । महान् । कविः । निवचनानि । नि । वचनानि । शꣳसन् । आ । वच्यस्व । चम्वोः । पूयमानः । विचक्षणः । वि । चक्षणः । जागृविः । देववीतौ । देव । वीतौ ॥१४००॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1400
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - अगले मन्त्र में मानव को उद्बोधन दिया गया है।
पदार्थ -
हे मानव ! (समन्या) सङ्ग्राम के योग्य, (भद्रा) उत्तम (वस्त्रा) वस्त्रों को (वसानः) पहनता हुआ, (महान्) महान् (कविः) विद्वान्, (निवचनानि) स्तोत्रों का (शंसन्) कीर्तन करता हुआ, (चम्वोः) आत्मा और मन में (पूयमानः) पवित्र किया जाता हुआ, (विचक्षणः) दूरद्रष्टा, (देववीतौ) परमात्मा की पूजा में (जागृविः) जागरूक तू (आवच्यस्व) चारों ओर प्रशंसा प्राप्त कर ॥२॥
भावार्थ - विघ्नों और विपदाओं से भरे होने के कारण सङ्ग्राम-तुल्य जीवन में मनुष्य हृदय में वीर-भाव रखकर, वीरोचित वेशभूषा आदि धारण कर, वीरोचित कार्यों को करता हुआ, जागरूक, पवित्र मनवाला परमेश्वर का पूजक होता हुआ यशस्वी बने ॥२॥
इस भाष्य को एडिट करें