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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1420
ऋषिः - नोधा गौतमः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
5
उ꣣त꣡ प्र पि꣢꣯प्य꣣ ऊ꣢ध꣣र꣡घ्न्या꣢या꣣ इ꣢न्दु꣣र्धा꣡रा꣢भिः सचते सुमे꣣धाः꣢ । मू꣣र्धा꣢नं꣣ गा꣢वः꣣ प꣡य꣢सा च꣣मू꣢ष्व꣣भि꣡ श्री꣢णन्ति꣣ व꣡सु꣢भि꣣र्न꣢ नि꣣क्तैः꣢ ॥१४२०॥
स्वर सहित पद पाठउ꣣त꣢ । प्र । पि꣣प्ये । ऊ꣡धः꣢꣯ । अ꣡घ्न्या꣢꣯याः । अ । घ्न्या꣣याः । इ꣡न्दुः꣢꣯ । धा꣡रा꣢꣯भिः । स꣣चते । सुमेधाः꣢ । सु꣣ । मेधाः꣢ । मू꣣र्धा꣡न꣢म् । गा꣡वः꣢꣯ । प꣡य꣢꣯सा । च꣣मू꣡षु꣢ । अ꣣भि꣡ । श्री꣡णन्ति । व꣡सु꣢꣯भिः । न । नि꣣क्तैः꣢ ॥१४२०॥
स्वर रहित मन्त्र
उत प्र पिप्य ऊधरघ्न्याया इन्दुर्धाराभिः सचते सुमेधाः । मूर्धानं गावः पयसा चमूष्वभि श्रीणन्ति वसुभिर्न निक्तैः ॥१४२०॥
स्वर रहित पद पाठ
उत । प्र । पिप्ये । ऊधः । अघ्न्यायाः । अ । घ्न्यायाः । इन्दुः । धाराभिः । सचते । सुमेधाः । सु । मेधाः । मूर्धानम् । गावः । पयसा । चमूषु । अभि । श्रीणन्ति । वसुभिः । न । निक्तैः ॥१४२०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1420
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में उपासक की आनन्द-प्राप्ति का वर्णन है।
पदार्थ -
(उत) और, जीवात्मा-रूपी बछड़े को देखकर (अघ्न्यायाः) जगन्मातारूपिणी दुधारू गाय का (ऊधः) उधस् (प्र पिप्ये) आनन्दरूप दूध से जब बढ़ जाता है, तब (सुमेधाः) उत्कृष्ट मेधावाला (इन्दुः) जीवात्मा-रूपी बछड़ा (धाराभिः) आनन्द की धारों से (सचते) संयुक्त हो जाता है। (गावः) ज्ञानेन्द्रिय-रूप गौएँ (पयसा) ज्ञानरूप दूध से (मूर्धानम्) शरीर के प्रधान जीवात्मा को (चमूषु) प्राण-रूप पतीलों में (अभि श्रीणन्ति) परिपक्व करती हैं, (न) जैसे (निक्तैः) शुद्ध (वसुभिः) सूर्यकिरणों से फल आदि पकते हैं ॥३॥ यहाँ उपमा और निगरणरूप अतिशयोक्ति अलङ्कार है ॥३॥
भावार्थ - जैसे बछड़ा अपनी माँ गाय का दूध पीता है, वैसे ही उपासक जगन्माता के आनन्द-रस का पान करता है ॥३॥
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