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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1425
ऋषिः - रेणुर्वैश्वामित्रः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
काण्ड नाम -
5
ते꣡ अ꣢स्य सन्तु के꣣त꣡वोऽमृ꣢꣯त्य꣣वो꣡ऽदा꣢भ्यासो ज꣣नु꣡षी꣢ उ꣣भे꣡ अनु꣢꣯ । ये꣡भि꣢र्नृ꣣म्णा꣡ च꣢ दे꣣꣬व्या꣢꣯ च पुन꣣त꣡ आदिद्राजा꣢꣯नं म꣣न꣡ना꣢ अगृभ्णत ॥१४२५॥
स्वर सहित पद पाठते । अ꣣स्य । सन्तु । केत꣡वः꣢ । अ꣡मृ꣢꣯त्यवः । अ । मृ꣣त्यवः । अ꣡दा꣣भ्यासः । अ । दा꣣भ्यासः । जनु꣢षी꣣इ꣡ति꣢ । उ꣣भे꣡इति꣢ । अ꣡नु꣢꣯ । ये꣡भिः꣢꣯ । नृ꣢म्णा꣢ । च꣣ । देव्या꣢꣯ । च꣣ । पुनते꣢ । आत् । इत् । रा꣡जा꣢꣯नम् । म꣣न꣡नाः꣢ । अ꣣गृभ्णत ॥१४२५॥
स्वर रहित मन्त्र
ते अस्य सन्तु केतवोऽमृत्यवोऽदाभ्यासो जनुषी उभे अनु । येभिर्नृम्णा च देव्या च पुनत आदिद्राजानं मनना अगृभ्णत ॥१४२५॥
स्वर रहित पद पाठ
ते । अस्य । सन्तु । केतवः । अमृत्यवः । अ । मृत्यवः । अदाभ्यासः । अ । दाभ्यासः । जनुषीइति । उभेइति । अनु । येभिः । नृम्णा । च । देव्या । च । पुनते । आत् । इत् । राजानम् । मननाः । अगृभ्णत ॥१४२५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1425
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में परमात्मा के तेज का विषय है।
पदार्थ -
(अस्य) इस सोम परमात्मा की (ते) वे प्रसिद्ध (अमृत्यवः)अमरणशील वा न मारनेवाली, (अदाभ्यासः) पराजित न की जा सकनेवाली (केतवः) तेज की किरणें (उभे जनुषी) दोनों जन्मों को अर्थात् इस जन्म तथा अगले जन्म को (अनु सन्तु)अनुगृहीत करें, (येभिः) जिन तेज की किरणों से (मननाः) मननशील उपासक अपने (नृम्णा च) देह-बल से किये जाने योग्य कर्मों को (दैव्या च) और आत्म-बल से किये जाने योग्य कर्मों को (पुनते) पवित्र कर लेते हैं। (आत् इत्) और उसके अनन्तर ही (राजानम्) तेजस्वी परमेश्वर को (अगृभ्णत) ग्रहण कर पाते हैं ॥३॥
भावार्थ - परमात्मा के तेजों का ध्यान करने तथा उन्हें धारण करने से यह लोक, परलोक और सब कर्म शुद्ध हो जाते हैं तथा परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है ॥३॥ इस खण्ड में परमेश्वर की उपासना तथा सोमयाग के फल का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ बारहवें अध्याय में पञ्चम खण्ड समाप्त ॥
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