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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1428
ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
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अ꣣भी꣡ नो꣢ अर्ष दि꣣व्या꣡ वसू꣢꣯न्य꣣भि꣢꣫ विश्वा꣣ पा꣡र्थि꣢वा पू꣣य꣡मा꣢नः । अ꣣भि꣢꣫ येन꣣ द्र꣡वि꣢णम꣣श्न꣡वा꣢मा꣣꣬भ्या꣢꣯र्षे꣣यं꣡ ज꣢मदग्नि꣣व꣡न्नः꣢ ॥१४२८॥

स्वर सहित पद पाठ

अभि꣢ । नः꣣ । अर्ष । दिव्या꣢ । व꣡सू꣢꣯नि । अ꣣भि꣢ । वि꣡श्वा꣢꣯ । पा꣡र्थि꣢꣯वा । पू꣣य꣡मा꣢नः । अ꣣भि꣢ । ये꣡न꣢꣯ । द्र꣡वि꣢꣯णम् । अ꣣श्न꣡वा꣢म । अ꣣भि꣢ । आर्षेय꣢म् । ज꣣मदग्निव꣢त् । ज꣣मत् । अग्निव꣢त् । नः꣣ ॥१४२८॥


स्वर रहित मन्त्र

अभी नो अर्ष दिव्या वसून्यभि विश्वा पार्थिवा पूयमानः । अभि येन द्रविणमश्नवामाभ्यार्षेयं जमदग्निवन्नः ॥१४२८॥


स्वर रहित पद पाठ

अभि । नः । अर्ष । दिव्या । वसूनि । अभि । विश्वा । पार्थिवा । पूयमानः । अभि । येन । द्रविणम् । अश्नवाम । अभि । आर्षेयम् । जमदग्निवत् । जमत् । अग्निवत् । नः ॥१४२८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1428
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
हे सोम जगदीश्वर ! आप (नः) हमें (दिव्या वसूनि) सत्य, अहिंसा आदि दिव्य ऐश्वर्य (अभि अर्ष) प्राप्त कराओ, (पूयमानः) मन में विद्यमान काम, क्रोध आदि से पृथक् करके विशुद्धरूप में दर्शन किये जाते हुए आप (विश्वा) सब (पार्थिवा) पार्थिव धन (अभि अर्ष) प्राप्त कराओ। हम (येन) जिसके द्वारा (द्रविणम्) दिव्यज्ञान (अभ्यश्नवाम) प्राप्त कर सकें, वह (आर्षेयम्) आर्ष चक्षु (जमदग्निवत्) जैसे प्रज्वलित अग्निवाले अग्निहोत्री को आप देते हो, वैसे ही (नः) हमें भी (अभि अर्ष) प्रदान करो ॥३॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥३॥

भावार्थ - परमेश्वर की कृपा से हम समस्त भौतिक और दिव्य धन तथा आर्ष चक्षु प्राप्त कर लें, जिससे सब सत्य ज्ञान और गूढ़ रहस्य भी हमारे सम्मुख हस्तामलकवत् स्पष्ट हो जाएँ ॥३॥

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