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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1475
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
स꣡ नो꣢ म꣣न्द्रा꣡भि꣢रध्व꣣रे꣢ जि꣣ह्वा꣡भि꣢र्यजा म꣣हः꣢ । आ꣢ दे꣣वा꣡न्व꣢क्षि꣣ य꣡क्षि꣢ च ॥१४७५॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । नः꣣ । मन्द्रा꣡भिः꣢ । अ꣣ध्वरे꣢ । जि꣣ह्वा꣡भिः꣢ । य꣣ज । महः꣢ । आ । दे꣣वा꣢न् । व꣣क्षि । य꣡क्षि꣢꣯ । च꣣ ॥१४७५॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो मन्द्राभिरध्वरे जिह्वाभिर्यजा महः । आ देवान्वक्षि यक्षि च ॥१४७५॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । नः । मन्द्राभिः । अध्वरे । जिह्वाभिः । यज । महः । आ । देवान् । वक्षि । यक्षि । च ॥१४७५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1475
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ -
हे अग्ने ! हे सबके अग्रनेता परमात्मन् ! (सः) वह आप (मन्द्राभिः) आनन्दायिनी (जिह्वाभिः) वेदवाणियों से (अध्वरे) जीवन-यज्ञ में (नः) हमें (महः) तेज (यज) प्राप्त कराओ और (देवान्) दिव्यगुणों को (आवक्षि) लाओ, (यक्षि च) और हमारे साथ सङ्गति करो ॥२॥
भावार्थ - जगत्पिता परमेश्वर की यह बड़ी भारी कृपा है कि उसने हमारे लिए वेदवाणी प्रदान की है, जिससे हमें अपने कर्तव्य का बोध होता है तथा जिससे हम तेज, पुरुषार्थ आदि की प्रेरणा पाते हैं ॥२॥
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