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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1523
ऋषिः - वसूयव आत्रेयाः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
वी꣣ति꣡हो꣢त्रं त्वा कवे द्यु꣣म꣢न्त꣣ꣳ स꣡मि꣢धीमहि । अ꣡ग्ने꣢ बृ꣣ह꣡न्त꣢मध्व꣣रे꣢ ॥१५२३॥
स्वर सहित पद पाठवीति꣡हो꣢त्रम् । वी꣣ति꣢ । हो꣣त्रम् । त्वा । कवे । द्युम꣡न्त꣢म् । सम् । इ꣣धीमहि । अ꣡ग्ने꣢꣯ । बृ꣣ह꣡न्त꣢म् । अ꣣ध्वरे꣢ ॥१५२३॥
स्वर रहित मन्त्र
वीतिहोत्रं त्वा कवे द्युमन्तꣳ समिधीमहि । अग्ने बृहन्तमध्वरे ॥१५२३॥
स्वर रहित पद पाठ
वीतिहोत्रम् । वीति । होत्रम् । त्वा । कवे । द्युमन्तम् । सम् । इधीमहि । अग्ने । बृहन्तम् । अध्वरे ॥१५२३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1523
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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विषय - आगे फिर उन्हीं के विषय में कहा गया है।
पदार्थ -
हे (कवे) क्रान्तदर्शी, (अग्ने) सर्वज्ञ, सर्वान्तर्यामी जगदीश्वर वा विद्वान् आचार्य ! (वीतिहोत्रम्) जगत् के उत्पादनरूप यज्ञ को वा विद्यायज्ञ को करनेवाले, (द्युमन्तम्) तेजस्वी, (बृहन्तम्) गुणों में महान् (त्वा) आपको, हम (अध्वरे) उपासना-यज्ञ, जीवन-यज्ञ वा विद्याध्ययन-यज्ञ में (समिधीमहि) प्रदीप्त करते हैं ॥३॥
भावार्थ - जो परमात्मा और आचार्य का सेवन करते हैं, वे विद्वान्, सदाचारी, गुणवान् और कर्मशूर होते हुए अभ्युदय और निःश्रेयस प्राप्त करते हैं ॥३॥ इस खण्ड में अग्निहोत्र, परमात्मा, राजा, योगिराज और आचार्य के विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ चौदहवें अध्याय में तृतीय खण्ड समाप्त ॥
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