Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1527
ऋषिः - केतुराग्नेयः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣣ग्नि꣡ꣳ हि꣢न्वन्तु नो꣣ धि꣢यः꣣ स꣡प्ति꣢मा꣣शु꣡मि꣢वा꣣जि꣡षु꣢ । ते꣡न꣢ जेष्म꣣ ध꣡नं꣢धनम् ॥१५२७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣ग्नि꣢म् । हि꣣न्वन्तु । नः । धि꣡यः꣢꣯ । स꣡प्ति꣢꣯म् । आ꣣शु꣢म् । इ꣣व । आजि꣡षु꣢ । ते꣡न꣢꣯ । जे꣣ष्म । ध꣡नं꣢꣯धनम् । ध꣡न꣢꣯म् । ध꣣नम् ॥१५२७॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निꣳ हिन्वन्तु नो धियः सप्तिमाशुमिवाजिषु । तेन जेष्म धनंधनम् ॥१५२७॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निम् । हिन्वन्तु । नः । धियः । सप्तिम् । आशुम् । इव । आजिषु । तेन । जेष्म । धनंधनम् । धनम् । धनम् ॥१५२७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1527
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - प्रथम मन्त्र में परमात्मा और राजा का विषय है।
पदार्थ -
(नः) हमारी (धियः) ध्यान-क्रियाएँ वा बुद्धियाँ (अग्निम्) अग्रनायक परमात्मा वा राजा को (हिन्वन्तु) प्रेरित करें, (आजिषु) युद्धों में (आशुं सप्तिम् इव) जैसे वेगवान् घोड़े को प्रेरित करते हैं। (तेन) उस परमात्मा वा राजा के द्वारा (धनं धनम्) प्रत्येक आध्यात्मिक वा भौतिक ऐश्वर्य को, हम (जेष्म) जीत लेवें ॥१॥यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥
भावार्थ - दिव्य सम्पदाओं और भौतिक सम्पदाओं की प्राप्ति के लिए परमेश्वर और राजा परम सहायक होते हैं ॥१॥
इस भाष्य को एडिट करें