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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1546
ऋषिः - त्रित आप्त्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
4
इ꣣नो꣡ रा꣢जन्न꣣रतिः꣡ समि꣢꣯द्धो꣣ रौ꣢द्रो꣣ द꣡क्षा꣢य सुषु꣣मा꣡ꣳ अ꣢दर्शि । चि꣣कि꣡द्वि भा꣢꣯ति भा꣣सा꣡ बृ꣢ह꣣ता꣡सि꣢क्नीमेति꣣ रु꣡श꣢तीम꣣पा꣡ज꣢न् ॥१५४६॥
स्वर सहित पद पाठइ꣣नः꣢ । रा꣣जन् । अरतिः꣢ । स꣡मि꣢꣯द्धः । सम् । इ꣣द्धः । रौ꣡द्रः꣢꣯ । द꣡क्षा꣢꣯य । सु꣣षु꣢मान् । अ꣣दर्शि । चिकि꣢त् । वि । भा꣣ति । भासा꣢ । बृ꣣हता꣢ । अ꣡सि꣢꣯क्नीम् । ए꣣ति । रु꣡श꣢꣯तीम् । अ꣣पा꣡ज꣢न् । अ꣣प । अ꣡ज꣢꣯न् ॥१५४६॥
स्वर रहित मन्त्र
इनो राजन्नरतिः समिद्धो रौद्रो दक्षाय सुषुमाꣳ अदर्शि । चिकिद्वि भाति भासा बृहतासिक्नीमेति रुशतीमपाजन् ॥१५४६॥
स्वर रहित पद पाठ
इनः । राजन् । अरतिः । समिद्धः । सम् । इद्धः । रौद्रः । दक्षाय । सुषुमान् । अदर्शि । चिकित् । वि । भाति । भासा । बृहता । असिक्नीम् । एति । रुशतीम् । अपाजन् । अप । अजन् ॥१५४६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1546
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा में परमात्मा का कर्तृत्व वर्णित है।
पदार्थ -
हे (राजन्) विश्व के राजा, सर्वान्तर्यामी परमात्मन् ! आप (इनः) सबके स्वामी, (अरतिः) सर्वव्यापक और (समिद्धः) स्वतः प्रकाशमान हो। आगे परोक्षरूप में कहते हैं—(रौद्रः) दुष्टों के लिए भयंकर, (सुषुमान्) सज्जनों के लिए रसमय वह परमात्मा (दक्षाय) बलप्राप्ति के लिए (अदर्शि) साक्षात्कार किया जाता है। (चिकित्) सर्वज्ञ वह (बृहता) महान् (भासा) दीप्ति से (विभाति) भासित होता है। (रुशतीम्) चमकीली उषा को (अपाजन्) व्यतीत कराता हुआ (असिक्नीम्) काली रात्रि को (एति) प्राप्त करता है। इसी प्रकार काली रात्रि को व्यतीत कराता हुआ चमकीली उषा को प्राप्त करता है, यह भी सूचित होता है। अभिप्राय यह है कि सारा दिन-रात्रि आदि का प्रपञ्च उसी का किया हुआ है ॥१॥
भावार्थ - दिन, रात, पक्ष, मास, ऋतुएँ, उत्तरायण, दक्षिणायन, वर्ष इत्यादि सारा ही काल-विभाग और जल, स्थल, आकाश, चाँद, सूर्य, तारे इत्यादि सारा देश-विभाग परमेश्वर का ही किया हुआ है, जिसमें वह सम्राट् होकर सब व्यवस्था कर रहा है ॥१॥
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