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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1556
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣡दा꣢भ्यः पुरए꣣ता꣢ वि꣣शा꣢म꣣ग्नि꣡र्मानु꣢꣯षीणाम् । तू꣢र्णी꣣ र꣢थः꣣ स꣢दा꣣ न꣡वः꣢ ॥१५५६॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡दा꣢꣯भ्यः । अ । दा꣣भ्यः । पुरएता꣢ । पु꣣रः । एता꣢ । वि꣣शा꣢म् । अ꣣ग्निः꣢ । मा꣡नु꣢꣯षीणाम् । तू꣡र्णिः꣢꣯ । र꣡थः꣢꣯ । स꣡दा꣣ । न꣡वः꣢꣯ ॥१५५६॥
स्वर रहित मन्त्र
अदाभ्यः पुरएता विशामग्निर्मानुषीणाम् । तूर्णी रथः सदा नवः ॥१५५६॥
स्वर रहित पद पाठ
अदाभ्यः । अ । दाभ्यः । पुरएता । पुरः । एता । विशाम् । अग्निः । मानुषीणाम् । तूर्णिः । रथः । सदा । नवः ॥१५५६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1556
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम मन्त्र में परमात्मा का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
(अग्निः) जगन्नायक सर्वान्तर्यामी परमेश्वर (अदाभ्यः) किसी से दबाया या पराजित न किया जा सकनेवाला और (मानुषीणां विशाम्) मानवी प्रजाओं के (पुर एता) आगे पहुँचनेवाला है। (रथः) इससे रचा हुआ मानव-शरीर रूप रथ (तूर्णिः) शीघ्रगामी और (सदा नवः) सदा स्तुतियोग्य होता है ॥१॥
भावार्थ - जगदीश्वर कैसा विलक्षण शिल्पकार है कि उससे रचा हुआ आत्मा से अधिष्ठित मानव-देह-रूप रथ चेतन होता हुआ स्वयं ही चलता है, स्वयं ही रुकता है और स्वयं ही कर्तव्य-अकर्तव्य का विवेक करता है ॥१॥
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