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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 156
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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प्र꣢ व꣣ इ꣡न्द्रा꣢य꣣ मा꣡द꣢न꣣ꣳ ह꣡र्य꣢श्वाय गायत । स꣡खा꣢यः सोम꣣पा꣡व्ने꣢ ॥१५६॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । वः꣣ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । मा꣡द꣢꣯नम् । ह꣡र्य꣢꣯श्वाय । ह꣡रि꣢꣯ । अ꣣श्वाय । गायत । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । सोमपा꣡व्ने꣢ । सो꣡म । पा꣡व्ने꣢꣯ ॥१५६॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र व इन्द्राय मादनꣳ हर्यश्वाय गायत । सखायः सोमपाव्ने ॥१५६॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । वः । इन्द्राय । मादनम् । हर्यश्वाय । हरि । अश्वाय । गायत । सखायः । स । खायः । सोमपाव्ने । सोम । पाव्ने ॥१५६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 156
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
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पदार्थ -
प्रथमः—परमात्मा के पक्ष में। हे (सखायः) साथियो ! (वः) तुम (हर्यश्वाय) जिसके द्वारा रचित घोड़े पशु या सूर्य-चन्द्र-वायु-बादल प्राण आदि बड़े वेगवान् हैं, ऐसे (सोमपाव्ने) भक्तिरूप सोमरस का पान करनेवाले और चन्द्रादि लोकों के रक्षक (इन्द्राय) परमैश्वर्यवान् परमात्मा के लिए (मादनम्) आनन्ददायक तृप्तिकारी स्तोत्र को (प्र गायत) प्रकृष्ट रूप से गाओ ॥ द्वितीय—राजा के पक्ष में। हे (सखायः) मित्रभूत प्रजाजनो ! (वः) तुम (हर्यश्वाय) जिसके अश्वयान, अग्नियान, वायुयान, विद्युत्-यान आदि बहुत वेगवान् हैं, उस (सोमपाव्ने) राष्ट्र में ब्रह्म-क्षत्र के रक्षक, और यज्ञ के रक्षक (इन्द्राय) ऐश्वर्यशाली शत्रुविदारक राजा के लिए (मादनम्) हर्षप्रद और उत्साहकारी उद्बोधनगीत या विजयगीत (प्र गायत) भली-भाँति गान करो ॥२॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥२॥

भावार्थ - सब सखाओं को मिलकर परमेश्वर के प्रति स्तुति-गीत और प्रजाओं को मिलकर युद्धारम्भ, विजयोत्सव आदि में राजा के प्रति उद्बोधन-गीत तथा विजय-गीत लयपूर्वक गाने चाहिएँ ॥२॥

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