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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1575
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
प्र꣡ वा꣢मर्चन्त्यु꣣क्थि꣡नो꣢ नीथा꣣वि꣡दो꣢ जरि꣣ता꣡रः꣢ । इ꣡न्द्रा꣢ग्नी꣣ इ꣢ष꣣ आ꣡ वृ꣢णे ॥१५७५॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । वा꣣म् । अर्चन्ति । उक्थि꣡नः꣢ । नी꣣थावि꣢दः꣢ । नी꣣थ । वि꣡दः꣢꣯ । ज꣣रिता꣡रः꣢ । इ꣡न्द्रा꣢꣯ग्नी । इ꣡न्द्र꣢꣯ । अ꣣ग्नीइ꣡ति꣢ । इ꣡षः꣢꣯ । आ । वृ꣣णे ॥१५७५॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र वामर्चन्त्युक्थिनो नीथाविदो जरितारः । इन्द्राग्नी इष आ वृणे ॥१५७५॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । वाम् । अर्चन्ति । उक्थिनः । नीथाविदः । नीथ । विदः । जरितारः । इन्द्राग्नी । इन्द्र । अग्नीइति । इषः । आ । वृणे ॥१५७५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1575
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम मन्त्र में जीवात्मा और परमात्मा का विषय वर्णित है।
पदार्थ -
हे (इन्द्राग्नी) जीवात्मन् और परमात्मन् ! (उक्थिनः) गुणों के प्रशंसक, (नीथाविदः) नीतिज्ञ (जरितारः) स्तोता लोग (वाम्) आप दोनों की (प्र अर्चन्ति) भली-भाँति स्तुति करते हैं। मैं आप दोनों की सहायता से (इषः) आनन्द-रसों और ज्ञान-रसों को (आवृणे) ग्रहण करता हूँ ॥१॥
भावार्थ - मनुष्य जीवात्मा को उद्बोधन देकर और परमात्मा की पूजा करके दिव्य ज्ञान तथा आनन्द को पाकर महान् उन्नति कर सकते हैं ॥२॥
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