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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1586
ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
क꣢या꣣ त्वं꣡ न꣢ ऊ꣣त्या꣡भि प्र म꣢꣯न्दसे वृषन् । क꣡या꣢ स्तो꣣तृ꣢भ्य꣣ आ꣡ भ꣢र ॥१५८६॥
स्वर सहित पद पाठक꣡या꣢꣯ । त्वम् । नः꣣ । ऊत्या꣢ । अ꣡भि꣢ । प्र । म꣣न्दसे । वृषन् । क꣡या꣢꣯ । स्तो꣣तृ꣡भ्यः꣢ । आ । भ꣣र ॥१५८६॥
स्वर रहित मन्त्र
कया त्वं न ऊत्याभि प्र मन्दसे वृषन् । कया स्तोतृभ्य आ भर ॥१५८६॥
स्वर रहित पद पाठ
कया । त्वम् । नः । ऊत्या । अभि । प्र । मन्दसे । वृषन् । कया । स्तोतृभ्यः । आ । भर ॥१५८६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1586
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - आगे पुनः जगदीश्वर, राजा वा आचार्य से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ -
हे (वृषन्) मनोरथों को पूर्ण करनेवाले, मार्ग के विघ्नों को हटानेवाले जगदीश्वर, राजन् वा आचार्य ! (त्वम्) आप ही (कया) सुखदायिनी (ऊत्या) रक्षा द्वारा (नः अभि) हमारे अभिमुख होकर (प्र मन्दसे) हमें भली-भाँति आनन्दित करते हो। (कया) उसी सुखदायिनी रक्षा द्वारा, आप (स्तोतृभ्यः) आपके गुण-कर्म-स्वभाव का कीर्तन करनेवाले स्तोताओं को (आभर) आनन्द प्रदान करो ॥१॥
भावार्थ - जगदीश्वर, राजा और आचार्य अविद्या, दुःख, दुर्गुण, दुर्व्यसन, शत्रु आदियों से यदि हमारी रक्षा करें तो वैयक्तिक और सामाजिक महान् उन्नति हो सकती है ॥१॥
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