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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1596
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - द्यावापृथिव्यौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
प्र꣢ वां꣣ म꣢हि꣣ द्य꣡वी꣢ अ꣣भ्यु꣡प꣢स्तुतिं भरामहे । शु꣢ची꣣ उ꣢प꣣ प्र꣡श꣢स्तये ॥१५९६॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । वा꣣म् । म꣡हि꣢꣯ । द्यवी꣢꣯इ꣡ति꣢ । अ꣣भि꣢ । उ꣡प꣢꣯स्तुतिम् । उ꣡प꣢꣯ । स्तु꣣तिम् । भरामहे । शु꣢ची꣢꣯इति । उ꣡प꣢꣯ । प्र꣡श꣢꣯स्तये । प्र । श꣣स्तये ॥१५९६॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र वां महि द्यवी अभ्युपस्तुतिं भरामहे । शुची उप प्रशस्तये ॥१५९६॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । वाम् । महि । द्यवीइति । अभि । उपस्तुतिम् । उप । स्तुतिम् । भरामहे । शुचीइति । उप । प्रशस्तये । प्र । शस्तये ॥१५९६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1596
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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विषय - अब द्यावापृथिवी के नाम से आत्मा और बुद्धि का विषय कहते हैं।
पदार्थ -
हे द्यावापृथिवी ! हे आत्मा और बुद्धि ! हम (प्रशस्तये) प्रशस्ति करने के लिए (द्यवी) तेजस्वी, (शुची) पवित्र (वाम् अभि) तुम दोनों के प्रति (महि) बहुत अधिक (उपस्तुतिम्) तुम्हारे गुण-कर्मों की प्रशंसा (प्र उप भरामहे) करते हैं ॥१॥
भावार्थ - आत्मा और बुद्धि दोनों ही अपना-अपना महत्त्व रखते हैं। उनसे उपकार सबको लेना चाहिए ॥१॥
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