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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1646
ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
9
त꣢व꣣ द्यौ꣡रि꣢न्द्र꣣ पौ꣡ꣳस्यं꣢ पृथि꣣वी꣡ व꣢र्धति꣣ श्र꣡वः꣢ । त्वा꣢꣫मापः꣣ प꣡र्व꣢तासश्च हिन्विरे ॥१६४६॥
स्वर सहित पद पाठत꣡व꣢꣯ । द्यौः । इ꣣न्द्र । पौ꣡ꣳस्य꣢꣯म् । पृ꣣थिवी꣢ । वर्ध꣣ति । श्र꣡वः । त्वाम् । आ꣡पः꣢꣯ । प꣡र्व꣢꣯तासः । च । हिन्विरे ॥१६४६॥
स्वर रहित मन्त्र
तव द्यौरिन्द्र पौꣳस्यं पृथिवी वर्धति श्रवः । त्वामापः पर्वतासश्च हिन्विरे ॥१६४६॥
स्वर रहित पद पाठ
तव । द्यौः । इन्द्र । पौꣳस्यम् । पृथिवी । वर्धति । श्रवः । त्वाम् । आपः । पर्वतासः । च । हिन्विरे ॥१६४६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1646
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - अब जगदीश्वर की महिमा का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
हे (इन्द्र) जगदीश्वर ! (तव) आपके (पौंस्यम्) बल को और(श्रवः) यश को (द्यौः) द्युलोक और (पृथिवी) भूलोक (वर्धति) बढ़ाते हैं, गाते हैं। (त्वाम्) आपको (आपः) नदियाँ (पर्वतासः च) और पर्वत (हिन्विरे) कीर्तिगान से बढ़ाते हैं ॥२॥
भावार्थ - सूर्य, बादल, बिजली, वायु, पृथिवी, नदियाँ, पहाड़, समुद्र, लताएँ, ऋतुएँ, तारावलि, मनुष्य, पशु, पक्षी सभी परमेश्वर की ही महिमा को गा रहे हैं, और गाते-गाते थकते नहीं ॥२॥
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