Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1671
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - विष्णुः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
वि꣢ष्णोः꣣ क꣡र्मा꣢णि पश्यत꣣ य꣡तो꣢ व्र꣣ता꣡नि꣢ पस्प꣣शे꣢ । इ꣡न्द्र꣢स्य꣣ यु꣢ज्यः꣣ स꣡खा꣢ ॥१६७१॥
स्वर सहित पद पाठवि꣡ष्णोः꣢꣯ । क꣡र्मा꣢꣯णि । प꣣श्यत । य꣡तः꣢꣯ । व्र꣣ता꣡नि꣢ । प꣣स्पशे । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । यु꣡ज्यः꣢꣯ । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ ॥१६७१॥
स्वर रहित मन्त्र
विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे । इन्द्रस्य युज्यः सखा ॥१६७१॥
स्वर रहित पद पाठ
विष्णोः । कर्माणि । पश्यत । यतः । व्रतानि । पस्पशे । इन्द्रस्य । युज्यः । सखा । स । खा ॥१६७१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1671
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - अगले मन्त्र में परमेश्वर के महत्त्व का वर्णन है।
पदार्थ -
(विष्णोः) सर्वान्तर्यामी जगदीश्वर के (कर्माणि) जगत्प्रपञ्च की उत्पत्ति करना, व्यवस्था करना आदि कर्मों को (पश्यत) देखो, (यतः) क्योंकि उसने उन्हें करने के लिए (व्रतानि) व्रत(पस्पशे) ग्रहण किये हुए हैं। वह जगत्पति (इन्द्रस्य) जीवात्मा का (युज्यः) साथ रहनेवाला (सखा) मित्र है ॥३॥
भावार्थ - जैसे व्रती जगदीश्वर इस जगत् में महान् कर्मों को कर रहा है, वैसे ही उसका सखा जीव भी उससे बल पाकर बहुत से कार्य करने में समर्थ समर्थ होता है ॥३॥
इस भाष्य को एडिट करें