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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1697
ऋषिः - मेध्यातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
5
दा꣣ना꣢ मृ꣣गो꣡ न वा꣢꣯र꣣णः꣡ पु꣢रु꣣त्रा꣢ च꣣र꣡थं꣢ दधे । न꣡ कि꣢ष्ट्वा꣣ नि꣡ य꣢म꣣दा꣢ सु꣣ते꣡ ग꣢मो म꣣हा꣡ꣳश्च꣢र꣣स्यो꣡ज꣢सा ॥१६९७॥
स्वर सहित पद पाठदा꣣ना꣢ । मृ꣣गः꣢ । न । वा꣣रणः꣢ । पु꣣रुत्रा꣢ । च꣣र꣡थ꣢म् । द꣣धे । न꣢ । किः꣣ । त्वा । नि꣢ । य꣣मत् । आ꣢ । सु꣣ते꣢ । ग꣣मः । महा꣢न् । च꣣रसि । ओ꣡ज꣢꣯सा ॥१६९७॥
स्वर रहित मन्त्र
दाना मृगो न वारणः पुरुत्रा चरथं दधे । न किष्ट्वा नि यमदा सुते गमो महाꣳश्चरस्योजसा ॥१६९७॥
स्वर रहित पद पाठ
दाना । मृगः । न । वारणः । पुरुत्रा । चरथम् । दधे । न । किः । त्वा । नि । यमत् । आ । सुते । गमः । महान् । चरसि । ओजसा ॥१६९७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1697
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
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विषय - आगे जगदीश्वर का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
(वारण) हाथी (मृगः) पशु (न) जैसे (चरथम्) गण्डस्थलों पर बहनेवाले (दाना) मदजल को (दधे) धारण करता है, वैसे ही (वारणः) विपत्तियों का निवारणकर्ता, (मृगः) सज्जनों को खोजनेवाला इन्द्र जगदीश्वर (पुरुत्रा) बहुत अधिक (चरथम्) सञ्चार करनेवाले (दाना) आनन्द-दान को (दधे) धारण करता है। हे इन्द्र जगदीश्वर ! आप (सुते) हमारे भक्तिरस के उमड़ने पर (आ गमः) आओ। (त्वा) आते हुए आपको (न किः) कोई नहीं (नि यमत्) रोक सके। (महान्) महान् आप (ओजसा) प्रताप के साथ (चरसि) सर्वत्र व्याप्त हो ॥२॥ यहाँ श्लिष्टोपमालङ्कार है ॥२॥
भावार्थ - जैसे हाथी गण्डस्थलों पर मदजल प्रवाहित करता है, वैसे ही परमेश्वर उपासकों के प्रति आनन्द-रस को बहाता है ॥२॥
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