Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1732
ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - उषाः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
5

उ꣡षो꣢ अ꣣द्ये꣡ह गो꣢꣯म꣣त्य꣡श्वा꣢वति विभावरि । रे꣣व꣢द꣣स्मे꣡ व्यु꣢च्छ सूनृतावति ॥१७३२॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣡षः꣢꣯ । अ꣣द्य꣡ । अ꣣ । द्य꣢ । इ꣣ह꣢ । गो꣣मति । अ꣡श्वा꣢꣯वति । वि꣣भावरि । वि । भावरि । रेव꣢त् । अ꣣स्मे꣡इति꣢ । वि । उ꣣च्छ । सूनृतावति । सु । नृतावति ॥१७३२॥


स्वर रहित मन्त्र

उषो अद्येह गोमत्यश्वावति विभावरि । रेवदस्मे व्युच्छ सूनृतावति ॥१७३२॥


स्वर रहित पद पाठ

उषः । अद्य । अ । द्य । इह । गोमति । अश्वावति । विभावरि । वि । भावरि । रेवत् । अस्मेइति । वि । उच्छ । सूनृतावति । सु । नृतावति ॥१७३२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1732
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment

पदार्थ -
(गोमति) गौओं और दिव्य प्रकाशोंवाली, (अश्वावति) घोड़ों और प्राणबलोंवाली, (विभावरि) ज्योतिर्मयी, (सूनृतावति) प्रिय, सत्य, मधुर वेदवाणीवाली, (उषः) हे जगन्माता ! तू (अद्य) आज (इह) इस हमारे जीवन में (अस्मे) हमारे लिए (रेवत्) दिव्य ऐश्वर्य के साथ उदित होती हुई (व्युच्छ) तमोगुण की अधिकता का निवारण कर दे ॥२॥

भावार्थ - जैसे ज्योतिर्मयी उषा रात्रि के अन्धकार को हटाती है, वैसे ही जगन्माता स्तोताओं के मानस-पटल से तमोगुण के साम्राज्य को दूर करके उन्हें सत्त्वगुण की प्रधानतावाला कर देती है ॥२॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top