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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1754
ऋषिः - अत्रिर्भौमः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
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उ꣣ता꣡ या꣢तꣳ संग꣣वे꣢ प्रा꣣त꣡रह्नो꣢꣯ म꣣ध्य꣡न्दि꣢न꣣ उ꣡दि꣢ता꣣ सू꣡र्य꣢स्य । दि꣢वा꣣ न꣢क्त꣣म꣡व꣢सा꣣ श꣡न्त꣢मेन꣣ ने꣡दानीं꣢꣯ पी꣣ति꣢र꣣श्वि꣡ना त꣢꣯तान ॥१७५४॥

स्वर सहित पद पाठ

उत꣢ । आ । या꣣तम् । संगवे꣢ । स꣣म् । गवे꣢ । प्रा꣣तः꣢ । अ꣡ह्नः꣢꣯ । अ । ह्नः꣣ । मध्य꣡न्दि꣢ने । उ꣡दि꣢꣯ता । उत् । इ꣣ता । सू꣡र्य꣢꣯स्य । दि꣡वा꣢꣯ । न꣡क्त꣢꣯म् । अ꣡व꣢꣯सा । श꣡न्त꣢꣯मेन । न । इ꣣दा꣡नी꣢म् । पी꣣तिः꣢ । अ꣣श्वि꣡ना꣢ । आ । त꣣तान ॥१७५४॥


स्वर रहित मन्त्र

उता यातꣳ संगवे प्रातरह्नो मध्यन्दिन उदिता सूर्यस्य । दिवा नक्तमवसा शन्तमेन नेदानीं पीतिरश्विना ततान ॥१७५४॥


स्वर रहित पद पाठ

उत । आ । यातम् । संगवे । सम् । गवे । प्रातः । अह्नः । अ । ह्नः । मध्यन्दिने । उदिता । उत् । इता । सूर्यस्य । दिवा । नक्तम् । अवसा । शन्तमेन । न । इदानीम् । पीतिः । अश्विना । आ । ततान ॥१७५४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1754
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
हे (अश्विना) प्राणापानो ! तुम (अह्नः) दिन के (सङ्गवे) गोदोहनकाल में अर्थात् ब्राह्ममुहूर्त्त में, (प्रातः) प्रातःकाल में, (मध्यन्दिने) मध्याह्न में (उत) और (सूर्यस्य) सूर्य के (उदिता) अस्त होने के काल में, (दिवा) दिन में और (नक्तम्) रात्रि में (शन्तमेन) अतिशय सुखदायक (अवसा) रक्षा के साथ (आयाताम्) आओ। (इदानीम्) इस समय (पीतिः) मृत्यु (न आ ततान) अपना फन्दा न फैलाये, अर्थात् हमारा वध न करे ॥३॥

भावार्थ - विधिपूर्वक प्रातः-सायं किया गया प्राणायाम दिन-रात सब कालों में कष्ट और मृत्यु से प्राणायाम करनेवाले की रक्षा करता है ॥३॥ इस खण्ड में यज्ञाग्नि, परमात्मा, उपास्य-उपासक, उषा, आध्यात्मिक प्रभा, रात्रि-उषा, अपरा-परा-विद्या तथा प्राणापान के विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ उन्नीसवें अध्याय में चतुर्थ खण्ड समाप्त ॥

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