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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1758
ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - अश्विनौ छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
8

अ꣡बो꣢ध्य꣣ग्नि꣡र्ज्म उदे꣢꣯ति꣣ सू꣢र्यो꣣ व्यु꣢३꣱षा꣢श्च꣣न्द्रा꣢ म꣣꣬ह्या꣢꣯वो अ꣣र्चि꣡षा꣢ । आ꣡यु꣢क्षाताम꣣श्वि꣢ना꣣ या꣡त꣢वे꣣ र꣢थं꣣ प्रा꣡सा꣢वीद्दे꣣वः꣡ स꣢वि꣣ता꣢꣫ जग꣣त्पृ꣡थ꣢क् ॥१७५८॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡बो꣢꣯धि । अ꣣ग्निः꣢ । ज्मः । उत् । ए꣣ति । सू꣡र्यः꣢꣯ । वि । उ꣣षाः꣢ । च꣣न्द्रा꣢ । म꣣ही꣢ । आ꣣वः । अर्चि꣡षा꣢ । आ꣡यु꣢꣯क्षाताम् । अ꣣श्वि꣡ना꣢ । या꣡त꣢꣯वे । र꣡थ꣢꣯म् । प्र । अ꣣सावीत् । देवः꣢ । स꣣विता꣢ । ज꣡ग꣢꣯त् । पृ꣡थ꣢꣯क् ॥१७५८॥


स्वर रहित मन्त्र

अबोध्यग्निर्ज्म उदेति सूर्यो व्यु३षाश्चन्द्रा मह्यावो अर्चिषा । आयुक्षातामश्विना यातवे रथं प्रासावीद्देवः सविता जगत्पृथक् ॥१७५८॥


स्वर रहित पद पाठ

अबोधि । अग्निः । ज्मः । उत् । एति । सूर्यः । वि । उषाः । चन्द्रा । मही । आवः । अर्चिषा । आयुक्षाताम् । अश्विना । यातवे । रथम् । प्र । असावीत् । देवः । सविता । जगत् । पृथक् ॥१७५८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1758
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(अग्निः) यज्ञाग्नि (अबोधि) यज्ञकुण्ड में प्रबुद्ध हुआ है। पूर्व दिशा में (ज्मः) क्षितिज से (सूर्यः) सूर्य (उदेति) उदित हो रहा है। (चन्द्रा) आह्लाददायिनी (मही) महती (उषाः) उषा (अर्चिषा) प्रभा के साथ (वि आवः) आविर्भूत हो गयी है। (अश्विना) प्राणापानों ने (यातवे) चलने के लिए (रथम्) शरीर-रथ को (आयुक्षाताम्) नियुक्त कर दिया है। (देवः) प्रकाशक (सविता) सूर्य ने (जगत्) जड़-चेतन जगत् को (पृथक्) अलग-अलग (प्रासावीत्) प्रकट कर दिया है ॥१॥ यहाँ स्वभावोक्ति अलङ्कार है ॥१॥

भावार्थ - प्रभात के रमणीय, स्वच्छ, स्फूर्तिदायक काल में सब स्त्री-पुरुषों को प्राणायाम की विधि से अष्टाङ्गयोग का अभ्यास करना चाहिए ॥१॥

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