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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1762
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣣भि꣢ प्रि꣣या꣢णि꣣ का꣢व्या꣣ वि꣢श्वा꣣ च꣡क्षा꣢णो अर्षति । ह꣡रि꣢स्तुञ्जा꣣न꣡ आयु꣢꣯धा ॥१७६२॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣भि꣢ । प्रि꣣या꣡णि꣢ । का꣡व्या꣢꣯ । वि꣡श्वा꣢꣯ । च꣡क्षा꣢꣯णः । अ꣣र्षति । ह꣡रिः꣢꣯ । तु꣣ञ्जानः꣢ । आ꣡यु꣢꣯धा ॥१७६२॥


स्वर रहित मन्त्र

अभि प्रियाणि काव्या विश्वा चक्षाणो अर्षति । हरिस्तुञ्जान आयुधा ॥१७६२॥


स्वर रहित पद पाठ

अभि । प्रियाणि । काव्या । विश्वा । चक्षाणः । अर्षति । हरिः । तुञ्जानः । आयुधा ॥१७६२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1762
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(हरिः) मनोहर तथा दोषों को हरनेवाला परमेश्वर (विश्वा) सब (प्रियाणि) प्रिय (काव्या) हितकर वचनों को (चक्षाणः) बोलता हुआ और (आयुधा) शस्त्रास्त्रों को, अर्थात् काम-क्रोध आदि शत्रुओं के पराजय के लिए शत्रु-दलन-सामर्थ्यों को (तुञ्जानः) देता हुआ (अभि अर्षति) हमारे प्रति आ रहा है, अन्तरात्मा में प्रकट हो रहा है ॥२॥

भावार्थ - परमेश्वर हमारे लिए हितकारी सन्देशों को प्रेरित करता है और शत्रुओं को हराने के लिए बल देता है ॥२॥

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