Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1769
ऋषिः - नृमेधो वामदेवो वा देवता - इन्द्रः छन्दः - द्विपदा गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
3

त्वा꣡मिच्छ꣢꣯वसस्पते꣣ य꣢न्ति꣣ गि꣢रो꣣ न꣢ सं꣣य꣡तः꣢ ॥१७६९॥

स्वर सहित पद पाठ

त्वा꣢म् । इत् । श꣣वसः । पते । य꣡न्ति꣢꣯ । गि꣡रः꣢꣯ । न । सं꣣य꣡तः꣢ । स꣣म् । य꣡तः꣢꣯ ॥१७६९॥


स्वर रहित मन्त्र

त्वामिच्छवसस्पते यन्ति गिरो न संयतः ॥१७६९॥


स्वर रहित पद पाठ

त्वाम् । इत् । शवसः । पते । यन्ति । गिरः । न । संयतः । सम् । यतः ॥१७६९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1769
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment

पदार्थ -
हे (शवसः पते) अध्यात्म-बल, ब्रह्मबल वा विद्याबल के स्वामी परमेश्वर वा आचार्य ! (गिरः न) वाणियों के समान (संयतः) प्रत्यनशील प्रजाएँ भी (त्वाम् इत्) आपको ही (यन्ति) प्राप्त होती हैं ॥२॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥

भावार्थ - जैसे वेदवाणियाँ जगदीश्वर के गुणों का वर्णन करती हैं और पुरुषार्थी प्रजाएँ उसे पाने का यत्न करती हैं, वैसे ही आचार्य की भी वाणियों से स्तुति करनी चाहिए तथा प्रयत्नशील विद्यार्थियों को शिष्यभाव से उसके समीप पहुँचना चाहिए ॥२॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top