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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1772
ऋषिः - प्रियमेध आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
तु꣡वि꣢शुष्म꣣ तु꣡वि꣢क्रतो꣣ श꣡ची꣢वो꣣ वि꣡श्व꣢या मते । आ꣡ प꣢प्राथ महित्व꣣ना꣢ ॥१७७२॥
स्वर सहित पद पाठतु꣡वि꣢꣯शुष्म । तु꣡वि꣢꣯ । शु꣣ष्म । तु꣡वि꣢꣯क्रतो । तु꣡वि꣢꣯ । क्र꣣तो । श꣡ची꣢꣯वः । वि꣡श्व꣢꣯या । म꣣ते । आ꣢ । प꣣प्राथ । महित्वना꣢ ॥१७७२॥
स्वर रहित मन्त्र
तुविशुष्म तुविक्रतो शचीवो विश्वया मते । आ पप्राथ महित्वना ॥१७७२॥
स्वर रहित पद पाठ
तुविशुष्म । तुवि । शुष्म । तुविक्रतो । तुवि । क्रतो । शचीवः । विश्वया । मते । आ । पप्राथ । महित्वना ॥१७७२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1772
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - आगे फिर वही विषय है।
पदार्थ -
हे (तुविशुष्म) बहुत बलवान्, (तुविक्रतो) बहुत प्रज्ञावाले वा बहुत-से यज्ञों को करनेवाले, (शचीवः) कर्मवान् (मते) मननशील परमेश्वर वा जीवात्मन् ! आप (विश्वया) बहुत प्रकार के (महित्वना) महत्त्वों से (आ पप्राथ) परिपूर्ण हो ॥२॥
भावार्थ - यद्यपि महत्त्व में परमेश्वर जीवात्मा से अधिक है, तो भी दोनों ही बलवान् बुद्धिमान्, मननशील और कर्मण्य हैं। जैसे परमेश्वर के बिना ब्रह्माण्ड की व्यवस्था नहीं चल सकती, वैसे ही जीवात्मा के बिना शरीर की व्यवस्था नहीं होती ॥२॥
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